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अंतस में होगा नहीं,जब तक ज्ञानालोक।
बने रहेगें रात-दिन,जीवन में दुःख शोक॥
जितनी माला फेरिए, करिए मंत्रोच्चार।
मन की पावनता बिना,यत्न सभी बेकार॥
अधरों पर हरि नाम है,मन में कटुता भाव।
पार तरे कैसे कहो,भव सागर से नाव॥
धर्म पंथ की आड़ में,चलती मुहिम विशेष।
धर्म नाम पर हो रहा,धर्म छोड़ सब शेष॥
धर्म नाम पर चल रहा,जब तक युद्ध परोक्ष।
तब तक मिल सकता नहीं,मानवता को मोक्ष॥
राम खुदा के नाम पर,रच-रचकर षडयंत्र।
जाप रहा है आदमी,केवल माया मंत्र॥
कर्महीन संसार में,धर्म बना व्यापार।
मठाधीश कहला रहे,असुरों के सरदार॥
मूल्यों के निर्वहन में,जो भी रहा समर्थ।
उसने ही जाना सदा,इस जीवन का अर्थ॥
‘बंसल’ तो करता यही,विनती एक विशेष।
छल कटुता की भावना,रहे नहीं मन शेष॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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