वक्त है कि थमता नहीं

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shailshree
वक्त है कि थमता नहीं,
वह किसी की सुनता नहीं।
वह चलती है अपने आप,
उसे किसी की परवाह नहीं॥
किसी के लिए रुकता नहीं,
वह किसी का मोहताज नहीं।
दिन-रात तो चलती रहती,
वक्त किसी की सोचता नहीं॥
चाहे हों हम खुशी या गम में,
वक्त कभी यह देखता नहीं।
बस चलना है उसके साथ,
इसे कुछ लोगों ने जाना नहीं॥
चाहे हो सम्पत्ति अपरिमित,
तुम उसे खरीद सकते नहीं।
ओ मानव समझ लो ये तुम,
वक्त को कभी डांटना नहीं॥
माथे भाग्य में जो है हमारे,
हमें भुगतना है उसे यहीं।
इसलिए हंसते निभाओ,
वक्त है कि थमता नहीं॥
पर दिल मेरा माना नहीं,
वक्त के खेल को जान के।
भी रोज वक्त को कोसा,
मैं हर  वक्त  रोती  रही॥
                                                                                             #शैलश्री आलूर ‘श्लेषा’
परिचय : डॉ.शैलश्री आलूर का  काव्यनाम ‘श्लेषा’ है। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद एमए,बीएड और एम.फिल. करके पीएचडी की है। निवास कर्नाटक राज्य के बादामी नगर (जिला बागलकोट) में है। लेखन के लिए आपके पिता श्री शनमुखप्पा ही आपकि प्रेरणा और हिम्मत हैं।

matruadmin

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