परिवर्तन

0 0
Read Time15 Minute, 24 Second

mitra-300x186

कभी-कभी कैसे बुलबुले उठते हैं मन में,कुछ बड़े तो कुछ छोटे..जैसे मन में कुछ खौल रहा होl तमाम तरह के वैचारिक बुलबुले उभरते और फटते हुए..। कहीं पढ़ रही थी कि,मनुष्य चाहे जितना भी व्यस्त क्यों न हो, एक निश्चित समय उसे खुद के साथ बिताना चाहिए, अच्छा लगता है खुद में डूबना। अपनी ही कही और की गई क्रियाओं का अवलोकन करना। अपनी अदालत में न्यायाधीश भी मैं,अभियुक्त भी मैं,और वकील भी मैं। अक्सर खो जाया करती थी नीलिमा ऐसी अदालतों की न्यायिक कार्यवाहियों में। बहुत अंदर तक गोता मारना पड़ता था,क्योंकि न्यायालय के सभी किरदार उसे ही निभाने पड़ते थे,निष्पक्ष न्याय की अपेक्षा सभी किरदारों को होती थी।
रोज़ एक नया मुकदमा..आज का प्रकरण था-आकाश का कल रात नियमानुसार बात करके न सोना। अक्सर दोनों मोबाइल पर सोने से पहले कुछ बातें करते और फिर ‘शुभरात्रि’ कहकर सोने की तैयारी।
हांलांकि दोनों की प्रेम कहानी के शुरुआती दौर में ये बातें अंतहीन और समय सीमा से परे होती थीं। चूँकि,अब एक लम्बा अरसा तय कर चुका है इन दोनों का प्रेम, अब वह उन्मादीपन नहीं है,एक दूजे के लिए तड़प अभी भी उतनी ही है,परन्तु एक दूजे की परिस्थियों और जीवन की प्राथमिकताओं की समझ अब परिपक्व होने लगी है। हालात मजबूर भी बना देते हैं और इंसान को धीरे-धीरे परिपक्व भी। नीलिमा के मन में जिरह चालू है। आइए अब आज के मुकदमे की पैरवी शुरू करते हैं।
इतवार था कल,झमझमाती बारिश थी..मतलब ये कि मौका भी और मौसम भी। आकाश और नीलिमा ने एक लम्बे अरसे बाद इस इतवारी सुबह को भरपूर जीया। दोनों अलग-अलग शहरों मे रहते हैं। दोनों के बीच सम्पर्क का एक मात्र साधन ‘मोबाइल’। क्या अद्भुत आविष्कार है मानव मस्तिष्क का! कभी दूरियों को पाट देता है,तो कभी दूरियां बना देता है यह अद्भुत यंत्र। खैर दोनों की सारी दुनिया इन्हीं दो लम्हों की बातों पर चलती थी। ईश्वर की कृपा दृष्टि ही थी,जो कल मौके मिलते गए और आत्मिक संतुष्टिदायक बातें दोनों के बीच होती रही सुबह के अलावा भी,पर आदत तो आदत हैl असमय जितना भी मिल जाए,परन्तु अपने निर्धारित समय पर खुराक़ न मिले तो तड़प और बेचैनी उत्पन्न होने लगती है,और मामला प्रेम का हो,तो फिर तो कुछ कहने ही नहींl
आदतन रात साढ़े नौ बजे तक नीलिमा ने आकाश को सन्देश भेज दिया-`जानेमन डिनर हो गया?`
और हर दो-तीन मिनट के बाद उत्तर की जाँच करती रही। फिर खुद डिनर की तैयारी में जुट गई। तब तक आकाश का कोई जवाब नहीं आया था। एक घंटे बाद नीलिमा ने यह सोचते हुए या यूँ कहिए खुद को समझाते हुए फिर सन्देश भेजा-सो गए क्या?
‘शुभरात्रि’! और अपनी अदालत खोलकर बैठ गई जिरह,सबूत,बयान…l आज सुबह अच्छी बात हुई,शाम को भी तो कितनी सुखद और सन्तुष्टिदायक वार्तालाप हुआ,चलो कोई नहीं जो अभी हमारी ‘निर्धारित शुभरात्रि’ चर्चा नहीं हुई।
इतना सब समझने-समझाने के बावजूद भी मन नहीं मान रहा थाl बार-बार आकाश के जवाब की अपेक्षा में फोन पर हाथ चला ही जाता था। आकाश का सन्देश आया,देखते ही चेहरा खिल उठा कि दो बातें कर के सो जाएगी वह,सुबह उठना था जल्दी। जवाब था-`ओ सजनी,
सताए रजनी
रवि भर मदमस्त
आ जा कामिनी`..
हाँ डिनर हो गया प्रिये।
`मेरा प्यार`
`शुभरात्रिl`
पुरूष कितने सरल और संतोषी होते हैं,कभी प्रेम करके देखिए यह तथ्य स्पष्ट हो जाएगा। जवाब देखते ही नीलिमा ने एक सांस में कई सन्देश भेज डाले
`थे कहाँ?
बिना बतियाए जा रहे हैं सोने।
बता कर जाइए कहाँ थे?
सुनिए,सुनिए,
देखिएगा मत,
दिल दुखाकर गए।`
परन्तु कोई जवाब पलट कर नहीं आयाl फोन भी किया पर व्यर्थ,क्योंकि महाशय दस मिनट के अंदर ही निद्रादेवी के आगोश में जा चुके थे।
नीलिमा रात एक बजे तक इधर-उधर करती रही,फिर न जाने कब उसकी भी आंख लग गई।
`ओह,सो गया था। तुमने शुभरात्रि कर दी थी इसलिए`l
आकाश के शुभप्रभात के साथ यह जवाब आया रात के संदेशों का। बस फिर क्या था,एक तरफ नारी मन का गहन मंथन और उससे उपजे तरह-तरह के गम्भीर निर्णय,और दूजी तरफ सहज-सरल और संतोषी पुरूष मन..तीक्ष्ण हृदयभेदी प्रहारों को झेलता हुआ।
एक छोटी-सी गलती कैसे जीवन दर्शन तक का चिन्तन करवा देती है यह विचारणीय एंव दर्शनीय है,और यदि आपने प्रेम किया है तब तो ऐसे ‘दार्शनिक तर्क-वितर्क` आएदिन झेलने पड़ सकते हैं।
नीलिमा ने खुद का आत्ममंथन इतनी देर में कर लिया था। उसके मन की अदालती जिरहबाज़ी ने यह परिणाम निकाले थे-`कभी-कभार बिना समय बात लम्बी कर लूँ तो मन मान लें कि,हो गया कोटा पूरा,अब अपना काम कर नीलिमा`l
बिचारे आकाश ने अपने बचाव में भोली-सी दलील रखी-`देखी न एक दिन तुम्हारी `शुभरात्रि` के कारण गफलत हो गई तो कैसे पटखनी दे रही हो मुझे।`पर कहाँ नीलिमा की अदालत अंतिम निर्णय ले चुकी थी,`अब से शुभरात्रि और शुभप्रभात बंद…कोई बंधन नहीं,सब उन्मुक्त आत्मा की तरह।`
आकाश की कोमल गुहार-`उफ़!! इतनी नाराज़गी,मेरी तो सोचो कुछ,क्या बीतेगी? उन्मुक्त तुम्हारे बिना?
बावली`l
नीलिमा-`नाराज़ नहीं हूँ,उतार रही हूँ सब।`
आकाश-`दोनों आत्मा एक। अलग की बात कितनी निरर्थक..
समझो हम हैं।`
नीलिमा-`वही तो समझ रही हूँ,अब कहाँ पहले जैसे करती हूँl
फोन नहीं आता था तब कितना आफत करती थी।`
आकाश-`संयुक्त भी नहीं,एक ही आत्मा दो शरीर में स्पंदनों को संचालित कर रही है। हमारे बीच तेरा-मेरा की कोई संभावना नहीं।`
नीलिमा-`बस यही दार्शनिकता उतार रही हूँ,पर आपकी स्थिति तक आने में थोड़ा और समय लगेगा।`
आकाश-`यह बताओ हमारी बातें कब बंद रहती हैं? कौन -सा पल है,जिसमें हम एक दूजे से पल भर को अलग हों। बता दो ज़रा?`
नीलिमा-`कभी नहीं होता`
हमेशा ख्यालों में रहते हैं,हवा की भांति।`
आकाश-`तो यह फोन कहां से आ गया??
सही बोली,हवा की तरहl`
नीलिमा-`वही तो बोल रही हूँ,फिर फोन आए न आए, कोई फरक ही नहीं पड़ेगा,पर उस स्थिति तक आने में मुझे समय लगेगा। उसी की तैयारी चल रही है।`
आकाश-`पर फिर भी फोन जरूरी है। आवाज से स्पंदनों से छूटे भाव सुनने को मिलते हैं।`
नीलिमा-`एक बार आपका फोन खराब हुआ था,आपसे दो दिन कोई बात नहीं हो पाई थीl कैसी हालत हो गई थी,पर अब वैसा नहीं करना(एक पुरानी घटना का संदर्भ देते हुए)l`
आकाश-`फोन को नकारा नहीं जा सकता है। सम्पूर्ण सम्प्रेषण हो सके,ऐसी कोई अभिव्यक्ति नहीं है,इसलिए अभिव्यक्ति के कई साधनों का उपयोग लाजिमी है।`
नीलिमा-(कटाक्ष मारते हुए)`यह अभिव्यक्ति भी एहसासों में हो जाएगी।`
आकाश-`एक दिन फोन न आए तो शाम तक हालात बिगड़ जाएंगे। अब तो और बुरी हालत होगी। दो दिन तो प्राण ले लेगा।
अभी मैं फोन करूं?`
नीलिमा-`नहीं,अभी नहीं बात करनी`(मुँह फुलाते हुए जवाब दिया)।
आकाश-`दार्शनिकता की ऐसी की तैसी।`
नीलिमा-`न,ऐसी की तैसी क्यों?यह अपनानी बहुत ज़रूरी है,वरना जीवन काटना भारी।`
आकाश-`आज फोटो की मांग नहीं की(यह भी एक नियम था रोज़ तैयार होकर आकाश अपनी फोटो नीलिमा को भेजता था,और नीलिमा सारा दिन उस फोटो को जाने कितनी बार निहारती थी,बातें करती थी, आकाश के चेहरे के भावों को पढ़ती रहती थी)?
दो शब्दों का खीझा-सा जवाब नीलिमा का-`आपने भेजी नहीं।`
आकाश-`तो पूछ तो सकती थी कि क्यों न भेजी?
कितनी दूर करती जा रही हो मुझे!
जैसे कोई अजनबी हूँ।
इत्तफाक से मिल गया था।`
उफ! एक छोटी-सी चूक के घातक परिणाम झेलता आकाश…। एक तो उमस भरा मौसम,पसीने से खस्ता हाल,उस पर प्रेमिका के बिगड़े मिजाज़ की गर्म हवाएं… ऐसा दंड….! राम बचाएं!!
‘मियां की जूती मियां के सर’ को सिद्ध करता उत्तर दिया  नीलिमा ने-`सोचा आप व्यस्त होंगें।`
मौसम और माशूका के वार को सहता हुए आकाश बोला-`देखो-देखो दुनियावालों,मेरी प्रिये बदल रही।`
माशूका से जीतना इतना आसान नहीं,दनदनाता हुआ उत्तर आया-`आपमें ढल रही हूँ।`
सीमा पर तैनात जवान की भांति हर वार को वीरता के साथ झेलता आकाश…बोला-`तर्क हर गलती को छुपा लेता है।
ढल रही..शानदार जवाब,वाह!!
ये मारी।`
दार्शनिकता के समन्दर में डूबती नीलिमा का निर्णायक जवाब-`आपको दुविधा में नहीं डालना कि,जीवन की प्राथमिकताएं देखूँ या नीलिमा??
प्राथमिकता पर ध्यान दें आप।`
आकाश-`प्राथमिकताएं तो चल ही रही हैं,नीलिमा तो मेरी सांस है।
उसे देखना नहीं,उसे तो जिए जा रहा हूँ।
प्राथमिकता तुम`
नीलिमा के अंदर का वकील मुकदमे पर अपनी पकड़ बनाता हुआ-`गलत`
आकाश-`क्या गलत। दूर कर रही हो?`
नीलिमा-`प्राथमिकताएं विवश करती हैं
मैं आपको विवश नहीं करना चाहती।`
आकाश थोड़ी दृढ़ता के साथ-`विवशता कभी-कभी आती है,रोज नहीं।`
नीलिमा-`एकदम भी नाराज़गी नहीं है।
बस यह सब बोल देती हूँ तो,अपने-आपको एक पायदान चढ़ा हुआ पाती हूँ।`
अपने-आपको अब न डिगाऊँगीं
हे प्रियतम,तुम रहो कर्मशील कर्तव्यपथ
पर,मैं बाधा बन न मार्ग अवरोध लगाऊँगीं,से भाव नीलिमा के मन में उफान मारने लगे थे।
आकाश पूरी चेष्टा के साथ बात को सम्भालने में लग गया-`छोड़ दो फिर कटी पतंग की तरह। यह विवश करना क्या है?
थोड़ी ज़िद न हो तो,मोहब्बत बेरंग हो जाती है।
तुम्हारे प्यार के पंजे से लटका मैं आसमानों का विचरण कर रहा और तुम विवशता की बात कर रही।`
नीलिमा-`एक दिन आपको लगेगा कि,नीलिमा सब समझ जाएगी।`
आकाश-`क्या समझ जाएगी
बोलो??`
नीलिमा-`कभी किसी कारण बात न हो पाई,तो इस तरह की बातें करके आपको परेशान नहीं करेगी। वह यह समझ जाएगी अवश्य ही कोई कारण रहा होगा।
अभी भी समझ आता है,पर समझकर भी न समझ बन जाती हूँ।`
आकाश-`अपनी स्वाभाविकता को मत बदलो,जैसी हो वैसी ही रहो। बेहद प्यारी लगती हो।`
नीलिमा-`पर मुझे खुद को बुरा लगता है,सब समझते हुए भी ऐसे तर्क-वितर्क कर समय नष्ट करती हूँ।`
आकाश-`तो क्या हुआ। हर बात प्यारी और अच्छी हो यह भी तो संभव नहीं।
सहजता में ही मजा है।
कोई परिवर्तन नहीं।`
नीलिमा-`जो है वह जाएगा थोड़े ही,मात्रा कमबेशी हो सकती है बस।`
बात का रूख बदलते हुए आकाश ने शरारतभरा प्रश्न पूछा-`हमारा बच्चा कब होगा?`
नीलिमा-(मूड में कोई परिवर्तन नहीं)
`हो गयाl`
आकाश चौंकते हुए-`कब??????`
नीलिमा-`परिवर्तन` नाम रखा है बच्चे का।`
`चलती हूँ नाश्ता बनाना है।
शुभदिनl`
आकाश के लिए जवाब की कोई गुन्जाइश न रखते हुए नीलिमा ने मुकदमे का फैसला सुना दिया।
आए-दिन ऐसे मामले दोनों की अदालत में आते रहते हैं। निर्णय लिए जाते हैं,और दूसरे ही पल,पुनः एक-दूसरे के प्रति उनकी अकुलाहट फिर बांवरी होने लगती है।

                                                                               #लिली मित्रा

परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं। 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

इन्द्रधनुष 

Tue Jul 11 , 2017
क्या है  इन्द्रधनुष? रंगों के मेल-मिलाप से बना एक खूबसूरत एहसासl प्रकृति प्रदत्त मनभावन नजाराl जो भाता भी सबको है,और हर्षाता भी सबको है। देता भी है,गहरा सबक- छुपा है प्रकृति प्रदत्त हर जीव-निर्जीव में आनंद ही आंनद, जरूरत है सिर्फ समझने की और मेल-मिलाप के उसके अद्भुत गुण से तादाम्य […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।