आलेख- कहाँ गया शुद्ध खाना

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कहाँ गया वह आँगन जहाँ होती अन्न की रोपाई थी, आलू, टमाटर, प्याज, धनिया संग उगाई ताजगी जाती थी, अपनी खेती कहने में गर्व और खानपान में न मिलावट थी, पौधों से ऑक्सीज़न मिलती और सब्जियाँ ऑर्गेनिक कहलाती थीं, हर घर रहता हरियाली का वास, रोगों की न होती थी कोई आस, आँगन से होता घर का परिचय, खेतों से लोगों की खानदानी थी, खो गया ज़माना अब वह जब शुद्धता की निशानी थी, शरीर में पीड़ा और मुख पर हँसी मात्र एक बनावट है, खानपान की वस्तुओं से लेकर रिश्तों तक में मिलावट है, अब युग मिलावट रानी है, जिसकी अपनी एक कहानी है, पहले खेती में घरेलू खाद का प्रयोग होता था अब रसायनिक पदार्थ की बारी है,
पहले पौधा उगता सालों साल ज़मीन पर अब रातों-रात उगकर बना ज़हर का प्याला है,
पहले गेहूँ, बाजरा खाया जाता था अब जंक फ़ूड का ज़माना है,
दूध, छाछ, लस्सी के बदले पेप्सी, सोडा को अपनाना है,
लोगों की इन्हीं खानपान से अनसुनी बीमारियों का आना–जाना है, कहने को तो आज भी हम फल–सब्जियाँ खाते हैं, पीने के पानी में भी हुई मिलावट से हम ज़हर निगल जाते हैं, कैसा बदला प्रकृति ने अपना स्वरूप जिससे बदलता जा रहा इंसान का रंग और रूप,
केवल मिलावट ही नहीं ज़हरीले खाने का दोष, अनियमित दिनचर्या और नासमझ मानव की सोच, मोटर गाड़ी से प्रदूषण जो फैलाता खाने में कुपोषण,
हर तरफ़ बढ़ता प्लास्टिक का प्रयोग जिससे कोई नहीं रह सकता निरोग,
आज़ादी का मतलब समझो यारो, अपनी आदत बदलो यारो, अपने आँगन में फल–फूल लगाओ, अपनी छत पर हरियाली
लाओ, स्वास्थ्य शरीर का यही है उपचार, खाने में ज़हर आज़ादी का करो प्रचार ।

#प्रेरणा बुड़ाकोटी,
नईदिल्ली

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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