
आज के इस नकारात्मक माहौल में सकारात्मकता लाने के उद्देश्य से मातृ दिवस के उपलक्ष्य में संस्कार मंच एवं ग्रीन लिटरेचर साहित्य मंच ने काव्य गोष्ठी आयोजित की। मुख्य अतिथि समाज सेविका पंकज संधीर के शुभाशीर्वाद से ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें अध्यक्ष की भूमिका चंडीगढ से कवि अनिल शर्मा चिंतित ने निभाई। मंच संचालन की भूमिका डाॅ गीतू धवन ने बखूबी निभाई।
माहिया समीर ने अपनी कविता में कहा कि ,
अँधेरे में दरीचे को खोलती होगी, माँ बंद लबों से कुछ बोलती होगी।
सुनीता महतानी ने कहा कि ,
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान, माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।
रिचा फौगाट ने अपने भाव यूँ व्यक्त किए ,
कहीं सुख का अमृत, कहीं अश्कों की माला है, माँ हमारी ज़िंदगी की पाठशाला।
न्यूज़ीलैंड से प्रोमिला अंजुमन ने अपनी बात यूँ रखी,
सर्दी की ठंडी रातों में तेरे अहसास की गर्मी ओढ़ना चाहती हूँ, माँ कहाँ हो तुम।
डाॅ गीतू धवन ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि ,
माँ तुझी से निकला मेरा किसी की माँ होने का अहसास, मुझे आज भी तेरी हर शिकायतों को सींचता सा लगता है। पूनम मेहता ने कहा कि ,
खाने की जब फरमाइशों में, मैं अपने शौक भुलाती हूँ,
माँ तुम बहुत याद आती हो।
उर्मिल श्योकंद ने कहा कि ‘कितना छोटा शब्द है माँ अर्थ में पूरी कायनात समाई है, माँ आज फिर तुझे याद करके मेरी आँखें भर आई है।
स्नेहलता की अभिव्यक्ति देखिए ‘मैंने इस समाज का दर्पण तब देखा, जब एक मजबूर को इसके हाथों बिकते देखा।
कैथल से मधु गोयल ने कहा कि,
माँ तू है तो जीवन की खुशियाँ हैं,देखते ही तुझे दूर हो जाती है उदासी चेहरे की।
शुभकरण गौड़ ने कहा कि ‘खेलते-कूदते कभी खरोंच आ जाती, मैं बाद में माँ पहले सिसकने लग जाती। सबसे छोटी कवयित्री स्नेहा ने कहा कि ‘माँ की ममता ईश्वर का वरदान है, सच पूछो तो माँ इंसान नहीं भगवान है। मोहाली से संतोष गर्ग ने कुछ ऐसे कहा ‘अधिकार की तो बात करते हो बेटा, क्या फर्ज भी तुमने निभाया कभी। अनिल चिंतित जी ने कहा कि ‘निवाला त्याग कर भूखी रही हमको खिलाया माँ, हमेशा नेक राहों पर हमें चलना सिखाया माँ।
अंत में अनीता जैन ने सभी कवियों का धन्यवाद करते हुए अपनी अभिव्यक्ति में ये कहते हुए गोष्ठी का समापन किया सभी कहते हैं संयम त्याग ममता की है मूरत माँ,मगर ये याद रखना माँ भी इक इंसान होती है।