गालिब ने कहा था, “खेल बच्चों का हुआ, दीन ए दीना न हुआ, वह आंख क्या जो कतरे में समन्दर को न देख ले। ” कतरे में समन्दर को देखने वाली आँख कविता की आँख होती है। ‘सावन’ के पास वह आँख है, जिससे उन्होंने लहरों, जलचरों और तूफानों को नहीं देखा है बल्कि देखा है उसकी असीम गहराइयों को, उसके अनन्त विस्तार को, उसकी गति को, उसकी त्वरा को, उसके संगीत को, उसके रंग को, उसके राग को और विराग को भी।
‘हाय री! कुमुदिनी’ कविता ने स्त्री विमर्श को सजीव किया है। कवि की कल्पना मौलिक है। ‘होली में रंग बरसाना है’ कविता में मर्यादित श्रृंगार है। ‘प्यार होना चाहिए’ में मुझे लगता है कि प्यार में केवल प्यार होना चाहिए खुल्लम खुल्ला। प्यार में चरित्र और संस्कार का मिश्रण न हो तो बेहतर। ‘जिन्दगी इक सपना’ अच्छी कविता है। ‘जिन्दगी इक नदी ‘ बहुत सुन्दर कविता है। ‘समय की रेत पर फिसल गई ज़िन्दगी ‘, ‘कुहू कूहू बोले रे कोयलिया ‘, “किराये का जीवन’, ‘खुशियों के लघु दीप’, ‘पहाड़’, ‘आओ पढ़ाई कर लो बेटी’ और ‘खोयी हुई दुनिया’ सकारात्मक कविताएँ हैं। कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ हिन्दी कविता के यशस्वी हस्ताक्षर हैं।
‘सावन’ की कविताओं में स्मृति बोध जैसी तरलता और सुबोधता है। यह स्मरणधर्मी रचना शिल्प कवि की विशेष लब्धि है।
‘सावन’ की कविताओं में अकुंठमन का नैसर्गिक उद्गार है। जीवन, पर्यावरण के प्रति सकारात्मक सोच और संतुलित दृष्टि है। सामाजिक विकृतियों पर प्रहार करते समय भी मर्यादा और शील की रक्षा हुई है।
इन कविताओं में कवि का उदार विजन लक्षित होता है। जिन्दगी के अक्षांश और देशान्तर से निर्मित अक्स पर समाज का एक रेखाचित्र अंकित किया गया है। वर्तमान का मूल्यांकन है, अतीत का पुनर्वालोकन है तथा भविष्य का संकेत भी। अमेजॉन पर भी उपलब्ध यह महत्वपूर्ण काव्य संग्रह पठनीय है।
‘सावन’ में असीम संभावनाएँ हैं। लेखनी अनवरत चलती रहे। रचते रहें। हँसते रहें।
देवीशरण त्रिपाठी
वरिष्ठ कवि एवं शिक्षाविद्
कसया, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश