
दामिनी झोपड़ी से बाहर अपने कपड़े ठीक करते हुए निकल आई । उसने अपने बीमार पति के मुंह में एक लोटा पानी उड़ेला और पुनः झोपड़े के भीतर चली गई ।
बीमार धनुआ चारपाई पर पड़ा-पड़ा एकटक दामिनी को देखता रहा । हताश-निराश धनुआ शारीरिकरूप से मजबूर था, पिछले साल रात के अंधेरे में कोई रहीस धनुआ को टक्कर मार कर भाग गया था । उस हादसे में धनुआ की रीढ़ की हड्डी टूट गई और तब ही से बेचारा चारपाई पर पड़ा अपने दिन गुजार रहा है । घर की आर्थिक स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई । धनुआ का पूरा परिवार भुखमरी के सागर में समा गया । दामिनी ने लकड़ी की टाल पर काम करना शुरू किया तो लगा कि अब घर में दो जून की रोटी बनने लगेगी । लेकिन यहां भी बुरा हुआ… दामिनी को एक दिन लकड़ी के टाल मालिक ने अपनी हवस का शिकार बना लिया । दामिनी ने लाख कोशिशें की न्याय पाने की, पुलिस थाने के चक्कर काट – काटकर वह थक गई । उसकी किसी ने न सुनी । कभी-कभी तो उसे लगा कि जिनसे वो न्याय की आशा रखती है, वे भी उसे नौंच खाने को तैयार हैं ।
रोटी की खातिर उसने अन्य जगह काम तलाशा, काम भी मिला, परंतु रावण हर जगह मौजूद थे । धीरे-धीरे समय बीता… दामिनी ने अपनी आर्थिक मजबूरी से समझौता कर लिया ।
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गूजर,
फतेहाबाद – आगरा