
जब तक सांसे चलती है,
गुरुदेव की महिमा गाऊ।
सपने में गुरु को देखू ,
जागू तो दर्शन पाऊ।
जब माया मोह में उलझा,
मन ने मुझे समझाया।
तब हाथ पकड़कर गुरु ने,
मुझे सत्य का पथ दिखलाया।
गुरु चरणों को में तज कर,
अब और कहाँ में जाऊ।
सपने में गुरु को देखू,
जागू तो दर्शन पाऊ।।
जब तक सांसे चलती है,
गुरुदेव की महिमा गाऊ।
मेरे मन का रूप दिखाये,
मुझे गुरु चरणों का दर्पण।
गुरुदेव की छाया हो तो,
टूटे पापो का बंधन।
गुरुदेव की महिमा समझू,
और दुनियां को समझाऊ।
सपने में गुरु को देखू,
जागू तो दर्शन पाऊ।।
जब तक सांसे चलती है,
गुरुदेव की महिमा गाऊ।
संसार के भाव सागर में,
गुरुदेव का मिला सहारा।
जब भाव सागर में डूबा,
तब गुरुदेव ने मुझको उभरा।
तुम गाओ राम की महिमा,
मैं विद्यासागर को ध्याऊ।
सपने में गुरु को देखू,
जागू तो दर्शन पाऊ।।
जब तक सांसे चलती है,
गुरुदेव की महिमा गाऊ।
आज शरद पूर्णिमा के दिन परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी के अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में मेरा उपरोक्त भजन उनके चरणों में और आप सभी श्रावकों के लिए समर्पित है।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुंबई )