अष्टम अनुसूची के बहाने फिर हिंदी पर वार..

0 0
Read Time5 Minute, 54 Second

राजभाषा हिंदी के घर बांटने के लिए जो छोटे दिमाग के लोगों का कई सालों से प्रयास हो रहा है उसका डटकर मुकाबला जो गिने चुने लोग कर रहे हैं उनमें डॉ अमरनाथ प्रथम पंक्ति में हैं ।मैंने हमेशा उनका समर्थन किया है और आगे भी करता रहूंगा ।कल अमेरिका से एक ऑनलाइन संगोष्ठी प्रसारित हुई थी जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ इस कुत्सित प्रयास की भी चर्चा हुई और डटकर मुकाबला करने का संकल्प लिया गया। उसमें विभिन्न देशों के 108 साहित्यकार विद्वान उपस्थित थे सबने एक स्वर से यह कहा कि हिंदी की बोलियों को उसके विरुद्ध खड़ा कर जो अंग्रेजी लोगों का षड्यंत्र चल रहा है उसको नाकाम करना होगा और जनता में इस बात को लाना होगा कि हिंदी कमजोर हुई तो कोई भी बोली सुरक्षित नहीं रहेगी। यह मैं प्रसंग वश यहां उद्धृत करना चाहता हूं। धन्यवाद
बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून

मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। वाकई हमारी बोलियों में लिखा जाने वाला उत्कृष्ट साहित्य पाठ्यक्रम रखे जाने की माँग स्वागत योग्य है। बांटने की मांग यदि कुछ लोग अपने स्वार्थ वश… अन्य बोलियों को इस तरह शामिल करने की माँग करते रहे तो हिंदी का वर्चस्व खत्म हो जाएगा।अंग्रेजी का ही बोलबाला रहेगा।
राधा गोयल

जाने-अनजाने में हिंदी भाषा-भाषी क्षेत्र की बोलियों से जुड़े कुछ लोग बोलियों को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की माँग करते रहते हैं। उन तक यह जानकारी पहुँचना अत्यंत आवश्यक है कि उनकी बोलियों को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने से लाभ नाममात्र का होगा उनके मन-मस्तिष्क में यह तथ्य पहुँचना चाहिए कि उनकी बोलियों का संबंध उनके राज्य तक सीमित है। बोलियों का विकास उनके राज्य की सरकार भलीभाँति करने में सक्षम है। बोलियों के साहित्यकारों और साहित्य को पुरस्कृत करने, सम्मानित करने में राज्य सरकार समर्थ है।
राज्यों की बोलियाँ लंबे समय से उनके महान साहित्यकारों के दम पर फ़ली-फूली, विकसित हुई है। उनके महत्व को बिल्कुल भी नकारा नहीं जा सकता है। बोलियों के क्षेत्र के कतिपय राजनीतिक अपने चुनावी क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत होकर आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित करने की माँग कुए के मेंढक की तरह करते रहते हैं। जैसे अभी बिहार में चुनाव होने जा रहे हैं और मतदाताओं को बोली के नाम पर भ्रमित करने के अवसर को भुनाने से नहीं चुक रहे हैं। ऐसी तुच्छ मानसिकता को अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए।
थोड़ा यह विचार आम लोगों तक पहुँचाया जाना आवश्यक है कि जहां-जहां बोलियाँ हैं, वहाँ-वहाँ उनकी अपनी हिंदी भाषा भी है। जो सभी बोलियों के बोलने वालों को परस्पर जोड़ती है।

हिंदी भाषा का आधार सभी हिंदी भाषी राज्य हैं। अत: बोलियों के कारण हिंदी भाषा को तिल मात्र भी नुक़सान नहीं पहुँचना चाहिए। यह हितकारी तथ्य सभी बोलियों के साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों को समझना ही होगा। हिंदी रहेगी, तो बोलियों को फलने-फूलने का पूरा अवसर मिलेगा। बोलियों के कारण हिंदी भाषा को नुक़सान होगा, तो बोलियों का अस्तित्व भी समाप्त होते देर नहीं लगेगी।
हिंदी भाषा और बोलियो का हित इसी में है कि जब भी मतगणना हो, हर बोली वाले को चाहिए कि वह अपनी पहली भाषा हिंदी को प्राथमिकता दें। ऐसा करने से हिंदी दुनिया की सबसे बड़ी संख्या वाली भाषा हो सकेगी।
वर्तमान में हिंदी भाषा से कम संख्या वाले राष्ट्रों की भाषाओं को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता प्राप्त है। हमारे देश की भाषा हिंदी को सभी बोलियों वाले संयुक्त प्रयास करके राष्ट्र संघ की मान्यता दिलाने का संकल्प पूरा कर सकते हैं।
ऐसा महती क़दम बोलियों और हिंदी दोनों के स्थायी हित में है। अन्यथा हिंदी और बोलियों, दोनों को अंग्रेज़ी भाषा के स्वार्थी पक्षधर ख़त्म करने में बिलकुल नहीं चुकेंगे।
निर्मल कुमार पाटौदी

संशोधन : – ‘हिन्दी का घर बाँटने वाले सांसद’ दिनांक 20 सितंबर 2020 को प्रस्तुत लेख का तीसरा वाक्य इस तरह होगा- “इसी तरह कुछ माह पहले पूर्व सांसद आर. के.सिन्हा ने राज्य सभा में भी यही मांग दुहराई थी।”

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

matruadmin

Next Post

बेटी से मां तक

Wed Sep 23 , 2020
जो नही चाहते कि वह पैदा हो उनका भी वह भला चाहती रही अपनी परवाह न करके कभी वह परिवार पर जान लुटाती रही मां के काम मे हाथ बंटाना बचपन मे भाई से मार खाना बेटी है इस कारण सहती रही फिर विवाह के पायदान पर पराया हो गया […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।