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जन-जन से भू पर अपने मैं प्यार कर रही हूँ ।
बढ़ती ही जा रही हूँ बिन फायदे के मैं तो,
हारे-थके हर-इक का उद्धार कर रही हूँ।
करते हैं लोग गन्दा, मेरी सहन तो देखो,
हर कष्ट झेलकर मैं व्यापार कर रही हूँ।
भू के असुर अब मेरा उपभोग कर रहे हैं,
छाती पर बैठ मेरी उद्योग कर रहे हैं।
गंगा मैं सब के स्वप्न को साकार कर रही हूँ,
मैं माँ हूँ अपने लाल से पुकार कर रही हूँ।।
#पंकज सिद्धार्थ
परिचय : पंकज सिद्धार्थ नौगढ़ सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश )से ताल्लुक रखते हैं,यानि गौतम बुद्ध की भूमि से।आपने गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर हिन्दी से किया है और बीएड जारी है।आप कविता को जीवन की आलोचना शौक मानकर अच्छी रचना लिखते हैं।
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Sat May 13 , 2017
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