भावनात्मक देशप्रेम के स्थान पर संवैधानिक देशप्रेम।

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  राष्ट्र सर्वोपरी है।जिसकी आन,बान व शान के लिऐ देश का प्रत्येक देशवासी हर समय हर प्रकार का त्याग व बलिदान करने पर गौरव अनुभव करता है।जो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है और अधिकार भी है। 
  सर्वविदित है कि भावना से कर्त्तव्य हमेशा ऊँचा होता है।इसलिए किसी भी देश के सभ्य व स्वस्थ समाज के लिऐ भावनात्मक देशप्रेम से संवैधानिक देशप्रेम कहीं ऊंचा एवं श्रेष्ट होता है। 
  यूँ तो युगों-युगों से प्रेम को पूजा का स्थान दिया गया है और देशप्रेम को सर्वश्रेष्ट व पूज्य माना गया है। 
  भले ही कर्त्तव्य ऊचाँ है।किन्तु भावना का भी महत्व कम नहीं आंका जाता। जैसे कर्त्तव्य यदि पेड़ है तो भावना उसकी जड़ है।जिसके बिना पौधा फल-फूल नहीं सकता।अत: संवैधानिक देशप्रेम का कर्त्तव्य निभाने  के लिऐ भावनात्मक देशप्रेम अति आवश्यक होता है। 
  संविधान शब्द सुनते ही आदर व सत्कार  की भावना स्वयं ही उत्पन हो जाती है।क्योंकि देश की खुशहाली,स्मृद्धि,विकास,शांति,न्याय,सुरक्षा व्यवस्था इत्यादि संविधान पर निर्भर है।जिसके चार सशक्त स्तम्भ हैं।जो इस प्रकार हैं।प्रथम विधायका,द्वितीय कार्यपालिका,तृतीय न्यायपालिका एवं चौथा पत्रकारिता है। 
  यही वह सशक्त स्तम्भ हैं।जिन पर सम्पूर्ण देश टिका हुआ है।यदि इन स्तम्भों में से एक स्तम्भ भी दुर्बल हो जाऐ तो देश विकलांग हो जाता है।दूसरा हो जांऐ तो देश बिमार हो जाता है। तीसरा हो जांऐ तो देश में उपद्रव शुरू हो जाते हैं।चारों स्तम्भ धराशाई हो जाऐ तो देश मृत्युशैया पर आसीन हो जाता है।जो अति दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण होता है।मुझे कहने में कोई परहेज नहीं है कि मेरे देश के चारों स्तम्भ गिर चुके हैं और देश मृत्युशैया पर आसीन हो चुका है। 
  इतिहास साक्षी है कि घर की कलह ने देश को गुलामी की जंजीरो में जकड़ दिया था।हमारे ग्रंथ भी घर के भेदी द्वारा लंका ढहने का संदेश देते हैं।अत: बाहरी दुश्मनों से घर के भेदी कहीं ज्यादा घातक होते हैं।जिन्हें ना तो भावनात्मक देशप्रेम है और ना ही संवैधानात्मक देशप्रेम है।उन भेड़ियों को यदि प्रेम है तो वह मात्र भ्रष्टाचार-प्रेम है।जिसमें चारों स्तम्भों के अधिकांश उच्च स्तरीय अधिकारी,सांसद, पत्रकार,अधिवक्ता एवं न्यायाधीश संलिप्त हैं।इसी भ्रष्टाचार ने देश को बुरी तरह खोखला कर दिया हुआ है। 
  जिस पर अभी भी अंकुश ना लगाया गया तो देश व देशवासियों को भारी संकटों व दूरगामी दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा।इसलिए हमें भ्रष्टाचार रूपी राक्षसों को मारना होगा,मिटाना होगा।

#इंदु भूषण बाली

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।