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मेरी जीवंत स्मृतियों में आज भी शामिल है एक सहज सरल उमंगता बचपन। संयुक्त परिवार के रिश्तों की झिलमिल कड़ियां………शरारतें……....पढ़ाई……….. गुरूजनों का सम्मान……..संवेदना से भरा संसार………..इन्हीं सबमें मेरे विश्वास श्रद्धा को विनत भाव का एक पुष्ट संस्कार मिला। खुशनुमा बचपन में लौटती हूँ तो,वहाँ ढेरों खुशियों के साथ साथ बीत रहा जीवन भी है। जीवन के एक-एक पड़ाव पर सफलता हर सफलता से खुशी और नया लक्ष्य। लक्ष्य से सफलता और सफलता से लक्ष्य…….मानो,यह यात्रा किसी उड़ती चिड़िया की यात्रा थी। इसी बीच उच्च स्तरीय अध्ययन और यौवन उम्र के संधिस्थल पर शादी। शादी,यानी एक आवश्यक स्वप्न का आवश्यक साकार रूप,पर मेरे लिए ऐसा नहीं था। शीघ्र ही शादी का वह साकार स्वप्न मेरी आँखों को तेज रोशनी से भेद गया। आँखों के साथ-साथ दिमाग के स्वप्निल रजत पटल पर स्याह धुंधलका छा गया एक स्थाई रात की तरह………। उस उड़ती चिड़िया की यात्रा बियावान रेगिस्तान में भटक गई थी जलविहीन………छांव विहीन………..कारवां विहीन। शादी एक दुखद अध्याय की तरह टूट चुकी थी। जुड़कर टूटने की वेदना मेरा निजी नासूर तो बनी ही,लेकिन मुझसे इतर मेरी ही दुनिया ने इस टूटने की जिम्मेदारी थोपने की चेष्टा में मुझे ही आलोचनाओंक-प्रत्यालोचनाओं के घेरे में ले लिया। ये आलोचनाएं तीखे बाण बनकर मेरे व्यक्तित्व के पोर-पोर को लहूलुहान करने पर आमादा थी। परिवार की साख,समाज का अचरज मेरे निजी घातक घावों से उपर आ चुके थे। एकाकी रहना ही मेरे लिए सुरक्षित अवस्था थी। पता नहीं,कब व कैसे इस एकाकी जीवन ने मुझे अपने आलिंगन में समेट लिया। यह आलिंगन मुझे राहत दे रहा था,या मेरे विस्तार को समेटकर मुझे किसी नए एहसास से साक्षात्कार करवा रहा था। पता चल गया था कि,अपने मार्ग को समतल बनाना है तो केवल मुझे ही……। कोई दूसरा मेरा मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता। जहाँ निर्जन है ,वहां छायादार वृक्ष उगाने होंगे……..सूनापन दूर करना है तो,कुछ गुनगुनाना भी होगा……….वन में भटकते भंवरे की तरह………लक्ष्य को पाने के लिए पंछियों की उड़ान से सबक लेना होगा। हाँ,मुझे लौटना होगा,अगर स्वयं को बचाना है तो लौटना होगा उन सफलताओं के प्रतीकों की ओर,जो बचपन,नवयौवन मेरी झोली में छोड़कर सदा-सदा के लिए गुम हो चुके थे।
मेरे आत्मविश्वास और स्नेहिल रिश्तों ने टूटे तंतुओं को फिर से बुनना शुरू किया। तह किए तहखाने के रास्ते से मैं पहुंची उन प्रमाण-पत्रों,पुरस्कारों तक,जिन्हें मैंने व्यर्थ मानकर घर में ही दफना-सा दिया था। साहित्यिक गतिविधियों के प्रेस रिव्यूज मेरे सामने थे। क्या यह वही सीमा है,जिसने कभी सर्वश्रेष्ठ छात्रा का खिताब पाया था या महाविद्यालय के स्नेह सम्मेलन में मॉ कविता पढ़ने पर सभी प्राध्यापकों ने जिसकी पीठ थपथपाई थी। बदले हुए इस जीवन ने मुझे एक नई दृष्टि दी….जीवन मूल्यों के प्रति नई दृष्टि। इस दृष्टि में संभावनओं का अनंत आकाश झिलमिला रहा था। इन सफलताओं के प्रतीकों की प्रेरणा व सहयोग से मैं बन गई सहायक प्राध्यापक। प्रदेश के श्रेष्ठ अखबारों में आकाशवाणी में लेखन-वाचन का काम चल पड़ा। निरन्तर लेखन ने मुझे प्रदेश स्तर के लेखकों के समूह में शामिल कर दिया। अब जीवन में आलोचनओं की जगह सराहना का नया परिपक्व दौर आ गया था। इसी दौरान शिलांग की साहित्यिक यात्रा से मित्र मिलते गए,उनके साथ जीवन भी विस्तार पाता चला गया। साहित्य जगत के पुरस्कारों-सम्मानों ने जहाँ मेरे आघातों को भुला दिया,वहीं मुझे संवेदनाओं का नया आकाश भी दिया। संवेदनाओं-वेदनाओं को समझने व उन्हें अभिव्यक्त करने का नया व्याकरण मुझे मिला।
हिन्दी प्राध्यापन के दौरान विद्यार्थियों को रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियों से जोड़ना,पर्यावरण को समृद्ध बनाने के लिए वृक्षारोपण करना या कभी किसी छात्र-छात्रा की परीक्षा फीस भरकर पढ़ाई नहीं छोड़ने की सलाह देना मेरे आत्मसंतोष का पर्याय बने। प्रतिदिन महाविद्यालय पहुँचने के लिए होने वाली नियमित यात्राओं में ही एक दिन अपने सामने की सीट पर आंसूओं से डूबे चेहरे वाली उस लड़की ने मेरी चेतना को चुनौती दे दी। क्यों बेटी…….? उसके आंसूओं का सैलाब अब मेरे कन्धों पर बह रहा था। रूंधे गले से रूक-रूककर उसने अपनी जो कहानी सुनाई, उससे बेगाने किंतु अपनत्व के किसी रास्ते से बहकर आई आंसूओं की अंजानी बूंदों ने मुझे अपने ही जीवन के भूल चुके उन रास्तों पर फिर से खड़ा कर दिया। मैंने उसे समझाने के प्रयास में अपना परिचय दिया-मैं सीमा….,क्या डॉ.सीमा शाहजी!
मैंने कहा-हाँ!
उस लड़की के छोटे-से जवाब ने मुझे अपने ही जीवन की सार्थकता का बोध करा दिया।‘दीदी आप तो सफल जीवन का प्रतीक हो। इस अंचल में आप जैसी सफल लेखिकाएं कितनी है……? उसने मुझे अपने संघर्ष एवं संघर्ष से उपजी सफलताओं का साक्षात्कार करवा दिया। क्योंकि,मैं ही जानती हूँ कि जीवन का एक रूप अगर सफलतओं में लक्ष्य पाने की प्रेरणा देता है तो,जीवन का ही एक और रूप संघर्ष से सफलता प्राप्त करने में पारंगत बना देता है। बचपन में सफलताओं से फूलने वाली यह लड़की जीवन के एक दौर से गुजरकर संघर्ष से सफलता पाने की कहानी जो बनी है।
जीवन में संघर्ष ओर विरोधाभासी परिस्थितियॉ आती है,लेकिन आत्मा का चेतस बना रहे…….आत्मविश्वास की लौ प्रदीप्त रहे…………….क्षमता से अधिक सह जाएं …………..अच्छे समय की प्रतीक्षा करें………….गोया संघर्ष के पल-पल को हम अपना बना लें……………तब देखिए,वह आपका गर्व ………….आपकी हिम्मत बन जाता है। आपके औचक और मरूस्थलीय संसार में रंग-बिरंगे फूल सृजित कर देता है। आपके आसपास एक हरित सौंदर्य,संघर्ष की एक अलग परिभाषा रच देता है। इस नए परिवेश में जो मंजा हुआ व्यक्तित्व सामने आता है,उस पर हम भरोसा भी नहीं कर पाते कि,क्या हम वही हैं,जो अपनी ही परिभाषा को भूल चुके थे..लेकिन चट्टानों से टकरा-टकराकर पत्थरों का चमकीली सीपियां बन जाने का माद्दा गर हो,तो मंजिलें दूर नहीं होती……फिर रास्ते भी आंसा हो जाते हैं।
#डॉ. सीमा शाहजी
परिचय : डॉ. सीमा शाहजी की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी-अंग्रेजी) के साथ पीएचडी(हिन्दी)हैl करीब डेढ़ दशक से विभिन्न विधाओं में आपका लेखन जारी है। आदिवासी संस्कृति व इस संस्कृति में महिलाओं की स्थिति पर आपने व्यापक अध्ययन किया हैl भारत सरकार की फ़ैलोशिप हेतु संदर्भ व्यक्ति के रूप में भी कार्यानुभव है,तो राज्य संसाधन केन्द्र (भोपाल-इन्दौर)के लिए साहित्य सृजन करती हैंl पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी(शिलांग) की कार्यशाला और भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय द्वारा भी सीनियर फ़ैलोशिप(2016-17)हेतु चयनित हैl देश-प्रदेश के ख्याति प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं में कविता,कहानियांक,लघुकथाएं,यात्रा वृतांत,निबंध,लेख समीक्षा का प्रकाशन तो,आकाशवाणी के मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के केन्द्रों से कविताओं,कहानियों एवं वार्ताओं का सतत प्रसारण होता रहा है। आप आल इंडिया पोयट्स कांफ्रेन्स(उत्तरप्रदेश)सहित इन्दौर लेखिका संघ,आजाद साहित्य परिषद आदि संस्थाओं से भी जुड़ी हैंl पुरस्कार के तौर पर विद्यासागर की उपाधि,पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी द्वारा सम्मान,महिला सशक्तिकरण लेखन पर पुरस्कार सहित अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर भी सम्मान दिया गया हैl म.प्र. के विभिन्न शा.महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के रूप में हिन्दी विषय का 2001 से निरन्तर अनुभव हैl डॉ.शाहजी थांदला(जिला झाबुआ,मप्र)में निवासरत हैंl
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