व्यंगिका – कल कल धुआँ

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कभी आश्चर्य होता है, किस तरह से हमारे मनीषियों, ऋषियों,
दिव्य विभूतियों ने,चारों युगों के, गुण धर्मानुसार नामकरण किए।

शायद उन्हें पता था, कि चौथा युग होगा ऐसा कलयुग, जहां के कलयुगी प्राणी, कल पुर्जों से घिरे रहेंगे।

यंत्र चालित से संवेदनहीन रहेंगे,
धुँआ खाएंगे ,धुआँ छोड़ेंगे और धुआँ ही पिएंगे।

कल कल करते निर्मल जल को,
एक पल भी साफ़ न रहने देँगे।

प्रकृति ,ज़मी ,आकाश का,
स्वार्थरत हो प्रतिपल दोहन करेंगे।

कलुषता का कवच पहने ,आज को बिगाड़,
आने वाले कल के लिए ,कुछ न सोचेंगे।

#अनुपमा श्रीवास्तव”अनुश्री”           

परिचय-       साहित्यकार , कवयित्री, एंकर, समाजसेवी।

अध्यक्ष – आरंभ फाउंडेशन एवं विश्व हिंदी संस्थान ,कनाडा , चेप्टर मध्यप्रदेश, भोपाल (मध्यप्रदेश)

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