बढ़ते मोबाइल घटते हम

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sachin
पुरानी फिल्मों में जैसे किसी व्यक्ति की जान किसी तोते में अटकी रहती थी, उसी प्रकार आज हम सबकी जान इस मोबाइल रूपी तोते में अटकी हुई है, आज बच्चे हो या युवा हो, बुजुर्ग हो या फिर महिला हो सभी बस मोबाइल पर बिजी हैं। हर चीज के अच्छे और बुरे दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार मोबाइल के भी दो पहलू हैं, एक अच्छा और एक बुरा। वैसे तो मोबाइल हमारे घर का सदस्य बन गया है, लेकिन बाकी सदस्यों के साथ दूरी की वजह भी यही मोबाइल है, जरा याद कीजिए हमने अपने परिवार के साथ बैठकर आखिरी बार खाना कब खाया था,, याद नहीं आया, अच्छा चलो याद कीजिए हमने अपने किसी जानने वाले से घंटों मोबाइल पर कब बतियाया था, यह भी याद नहीं आया चलो छोड़ो अब यह याद कीजिए हम आखरी बार बारिश में कब भीगे थे यह भी याद नहीं आया देखा यह सब कभी हमारी दिनचर्या में शामिल था। लेकिन जब से यह मोबाइल हमारे जीवन में आया है, हम अपनों से और स्वयं से दूर होते जा रही हैं। बच्चे अब खो खो कबड्डी फुटबॉल या कुश्ती नहीं खेलते, वह केवल मोबाइल वाले गेम खेलते हैं, बच्चे रोते हैं घर वाले उनके हाथ में मोबाइल दे देते हैं, और फिर धीरे धीरे मोबाइल देखना बच्चे को बुरी लत के जैसा लग जाता है, फिर हम परेशान होते हैं कि अब हम अपने बच्चों से मोबाइल को कैसे दूर करें, एक अरसा बीत गया जब हम खुले आसमान के नीचे तारों को देखते देखते सो जाया करते थे, और आज मोबाइल पर व्हाट्सएप के जवाब देते देते हमें नींद आती है। युवा पीढ़ी बुजुर्गों के पास नहीं बैठती जिसकी वजह भी मोबाइल है, हम केवल मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं किसी ने सच ही कहा है,,
 “” कुछ देर बैठा करो बुजुर्गों के पास
सब कुछ नहीं होता गूगल के पास””
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार(उत्तराखंड) 

matruadmin

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