बुढ़ापा…

1
1 0
Read Time2 Minute, 50 Second

aalok
मैं भी जीना चाहता हूँ…
शामिल होना चाहता हूँ
तुम्हारी दुनियाँ में
बिलकुल वैसे ही…
जैसे शामिल हुए थे
तुम
मेरे जीवन में
एक जीवन्त आशा लिए।

मेरे सूखे अधरों पर,
बारिश की फुहार बनकर..
मेरी सांसों की रफ़्तार बनकर,
एक खुशनुमा एहसास
लेकर समाए थे
तुम
हमाररे अरमान बनकर।

याद है न…..
कैसे अंगुलियाँ पकड़कर,
लोगों से मिलवाता था
तुम्हें
और फख्र से
चौड़ा हो जाया करता था
सीना मेरा।

भूल गए न…
कैसे संजोता था,
तुम्हारी यादों को
और
तुम्हारी
एक ख़ुशी के लिए
भूल जाता था
अपनी सारी ख़ुशी।

मेरी एक गलती पर,
कितना चिढ़ जाते हो..
तुम
है न…
पता है…
तुम्हारी हर गलती पर
हम बस मुस्कुरा दिया करता थे,
और प्यार से
समझाते थे
तुम्हें।

जानते हो…
अब उसी तरह,
तुम्हारी जरूरत है
मुझे भी..
आज उसी प्यार की
दरकार है मुझे भी।

मेरे ऊपर का,
कोई भी खर्चा..
फिजूलखर्ची
लगती है न तुम्हें,
याद है…
कितने खिलौनों को
खेल-खेल में
तोड़ जाया करते थे तुम।

मेरा दिल तोड़ते हो,
और फिर कभी
पूछने भी नहीं आते..
पता है न…
तुम रूठते थे
तो हम जमीन-आसमान,
एक करके
तुम्हें झट से मना लिया करते थे।

आज जाने क्यूँ,
तुम
मुझे देखते ही..
घबरा जाते हो
मुझे किसी से मिलवाने में
शर्म-सी मेहसूस होती है,
तुम्हें
एक अलग ही-सी
दुनिया में
कैद कर देना चाहते हो
मुझे..
बिलकुल अलग-थलग
खुद से दूर।

भूल गए न शायद,
तुम
हम तुम्हें एक पल को भी
तन्हा नहीं छोड़ते थे।

जानता हूँ..
कि जानना नहीं चाहते हो,
तुम
ख्वाहिशें मेरी
जबकि…
मैं भी चलना चाहता हूँ
तुम्हारे साथ..
समझना चाहता हूँ
तुम्हारी दुनिया को
तुम्हारी उँगलियों को पकड़कर,
ठीक वैसे ही
जैसे तुम चले थे कभी
मेरे साथ।।

                 #आलोक रंजन

परिचय: आलोक रंजन की शिक्षा स्नातक (प्रा.भा.इतिहास)है। आप लगभग सभी साहित्यिक विधा में लेखन करते हैं। प्रकाशित कृति आगाज़(साझा काव्य संग्रह) है तो, कुछ पत्रिकाओं में कविताएं,लघु निबंध प्रकाशितहैं। आप जिला बेगुसराय(बिहार)में रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “बुढ़ापा…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

दुआ करो ...

Thu Apr 6 , 2017
सौरभ फूलों का न कम हो, यह दुआ करो.. पवन न कभी मंद हो, यह दुआ करो। नव रश्मियाँ कलिकाएँ नई, खिलाती रहें.. कलिकाएँ नव घूँघट उघाड़, मुस्काती रहें.. भाव प्रकृति का न कम हो, यह दुआ करो। समय पर लगा दो अपने, कर्म का पहरा.. यह वक़्त है अभिमानी, […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।