छुप-छुप के पीछा करती है,
अपनी कभी बेगानी-सी लगती।
खुद से ही बातें करती है,
बिंदास कभी सकुचानी-सी लगती।
सुध-बुध सी खोए रहती है,
वो नजर दीवानी-सी लगती।
तकती है मुझे वो मुंडेर से,
देखे है मुझे गलियारे से।
पनघट पे बुलाती है मुझको,
करे इशारे वो चौबारे से।
बेशर्म कभी लजानी-सी लगती,
वो नजर दीवानी-सी लगती।
मुझको यह खबर है हुई नहीं,
कब कैसे दिल में घुस आई ।
आहट न कोई पदचाप हुई,
कैसी उसकी यह चतुराई।
अल्हड़ कभी सयानी सी लगती,
वो नजर दीवानी-सी लगती।
#राजबाला ‘धैर्य’
परिचय : राजबाला ‘धैर्य’ पिता रामसिंह आजाद का निवास उत्तर प्रदेश के बरेली में है। 1976 में जन्म के बाद आपने एमए,बीएड सहित बीटीसी और नेट की शिक्षा हासिल की है। आपकी लेखन विधाओं में गीत,गजल,कहानी,मुक्तक आदि हैं। आप विशेष रुप से बाल साहित्य रचती हैं। प्रकाशित कृतियां -‘हे केदार ! सब बेजार, प्रकृति की गाथा’ आपकी हैं तो प्रधान सम्पादक के रुप में बाल पत्रिका से जुड़ी हुई हैं।आप शिक्षक के तौर पर बरेली की गंगानगर कालोनी (उ.प्र.) में कार्यरत हैं।