‘अंतरराष्ट्रीय कविता दिवस विशेष’
लफ्जों को ढालना,
कविता नहीं होती..
दिल तक उतर सके,
कविता उसे कहें।
पीड़ाओं की गणित,
शिकवों के पुलिंदे..
शब्दों में बाँधकर,
कविता नहीं होती।
पीड़ा जो सोख ले,
शिकवे समोह ले..
जस्बों को साध ले,
कविता उसे कहें।
उलाहना दे जो,
अतृप्त जो रहे..
हर्फों में विष भरे,
कविता नहीं होती।
सीखें कि जिससे हम,
तृप्ति की जब कला..
अमृत पिये कलम,
कविता उसे कहें।
सदियों से सर्वदा,
लिख दी जो शत्रुता..
जो प्रेम तोड़ दे,
कविता नहीं होती।
क्या पाइएगा तब,
जब लेखिनी लड़े..
शांति कलम गढ़े,
कविता उसे कहें।
#प्रियंका बाजपेयी
परिचय : बतौर लेखक श्रीमती प्रियंका बाजपेयी साहित्य जगत में काफी समय से सक्रिय हैं। वाराणसी (उ.प्र.) में 1974 में जन्मी हैं और आप इंदौर में ही निवासरत हैं। इंजीनियर की शिक्षा हासिल करके आप पारिवारिक कपड़ों के व्यापार (इंदौर ) में सहयोगी होने के साथ ही लेखन क्षेत्र में लयबद्ध और वर्ण पिरामिड कविताओं के जानी जाती हैं। हाइकू कविताएं, छंदबद्ध कविताएं,छंद मुक्त कविताएं लिखने के साथ ही कुछ लघु कहानियां एवं नाट्य रूपांतरण भी आपके नाम हैं। साहित्यिक पत्रिका एवं ब्लॉग में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं तो, संकलन ‘यादों का मानसरोवर’ एवं हाइकू संग्रह ‘मन के मोती’ की प्रकाशन प्रक्रिया जारी है। लेखनी से आपको राष्ट्रीय पुष्पेन्द्र कविता अलंकरण-2016 और अमृत सम्मान भी प्राप्त हुआ है।
सुन्दर!!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ती
Very nice