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ओस से लिप्त उगता सूरज देख कर मन हर्षाया है।
ऐसा लग रहा है,जैसे कोई बिछड़ा दोस्त लौट आया है।।
आओ स्वागत करे हाथ उठाकर सूरज का कुछ इस तरह।
जैसे बिछड़ा मीत तुमसे मिलने फिर से आया है ।।
आओ आलिंगन करे सूरज का बाहें उठाकर इस तरह।
जैसे कृष्ण से बिछड़ा सुदामा आँखो में अश्रु लिए प्रभु को गले लगाए ।
सूरज समान मित्र अगर जीवन से जुड़ जाए ।
जीवन का अंधकार फिर , जीवन से दूर हो जाए ।।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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