“कुछ नही बदला””

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minakshi vashishth

कुछ नही बदला
अभी उस इलाहाबाद के पथ पर-,,,
वो जो कभी तोड़ती थी पत्थर,,,
जिसे देखा था ‘निराला’ ने तोड़ते पत्थर ,,,
वो आज भी तोड़ रही है पत्थर !!
हाँ अब भी नही कोई
वृक्ष छायादार
जिसके तले बैठ सके
दो घड़ी निश्चिंत, , , ,
उसका भरा ,बंधा यौवन
जिसे देखकर,पल भर
ठिठक जाते थे पाँव
अब ढल गया है
झुर्रियाँ आ धमकी हैं
चेहरे पर !!
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत
मन था भला कैसे ??
घूरती नजरें – – –
लपकते हाथ चारो ओर
और सहमी सी वो ,,,
बस तोड़ती पत्थर !!
गर्मियों के दिन,,
चटख धूप, , ,
झुलसाती हुई लू ,,
सब सीख लिया सहना
अब सुबह, दुपहर,शाम
हँसकर तोड़ती पत्थर !!
लेकर हथौड़ा हाथ
करती बार-बार प्रहार
फिर फिर तोड़ती पत्थर !!
सामने तरु मालिका
अट्टालिका प्राकार
पर न था मनुज कोई
ना ही थी मनुजता
देखते देखा तुम्हे
जब एक बार
फिर जगी मन में
मदद की एक आश
बस इसलिये ….
देखा तुम्हे था छिन्नतार!!
क्या जान पाये तुम
वो क्यों हुई लाचार
कि क्यों तुम्हे देखा था
उस दृष्टि से , , ,
ज्यौं मार खा रोई नही,,,
क्यों सुनी तुमने वह नही
जो थी सुनी झंकार !!
याद करके सत्य फिर समाज का – – –
एक क्षण के बाद,,,
वह काँपी,,,
फिर सम्भलकर
हो गई निज कर्म रत!!
उसे बाँधकर कविता,
कहानी ,चित्र में
सब बढ़ गये आगे
पर वो वहीं है,
वो’ जहाँ थी “तोड़ती पत्थर”
कुछ नही बदला अभी उस
इलाहाबाद के पथ पर… !

#मीनाक्षी वशिष्ठ
नाम->मीनाक्षी वशिष्ठ
 
जन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )
वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)
शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एड
विधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि ।

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