मेरी सांसें किधर..

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chatrapal

तिनका तिनका बिखर गई हैं,
मेरी सांसें किधर गई हैं।

पीछे-पीछे भागा दौड़ा,
आगे-आगे जिधर गई हैं।

दुनिया के मेले में ढूँढा,
उधर गई या इधर गई हैं।

खतरा कतरा-कतरा आया,
मुस्कानें भी बिफर गई हैं।

मानवता मकड़ी जाले में,
सच को दीमक कुतर गई है।

नोटों का बंडल जो उछला,
आज गवाही मुकर गई है।

बूँदों-सी ये बढ़ती उलझन,
सुलझन डरकर सिहर गई है।

माँ के कदमों को छूते ही,
सब चिन्ताएं सुधर गई हैं।

ममता का जो साया पाया,
अपनी काया निखर गई है।

लिखते-लिखते रुक गए तो,
ग़ज़ल ‘शिवाजी’ ठहर गई है।

                                                     #छत्रपाल

परिचय :  छत्रपाल शिवाजी भोलेनाथ के अनन्य भक्त कवि हैं। आप सागवाडा के जिला डूँगरपुर (राजस्थान) में रहते हैं।

matruadmin

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2 thoughts on “मेरी सांसें किधर..

  1. नैतिक पतन के दौर में संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार पर प्रहार करती सुन्दर रचना।

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