तिनका तिनका बिखर गई हैं,
मेरी सांसें किधर गई हैं।
पीछे-पीछे भागा दौड़ा,
आगे-आगे जिधर गई हैं।
दुनिया के मेले में ढूँढा,
उधर गई या इधर गई हैं।
खतरा कतरा-कतरा आया,
मुस्कानें भी बिफर गई हैं।
मानवता मकड़ी जाले में,
सच को दीमक कुतर गई है।
नोटों का बंडल जो उछला,
आज गवाही मुकर गई है।
बूँदों-सी ये बढ़ती उलझन,
सुलझन डरकर सिहर गई है।
माँ के कदमों को छूते ही,
सब चिन्ताएं सुधर गई हैं।
ममता का जो साया पाया,
अपनी काया निखर गई है।
लिखते-लिखते रुक गए तो,
ग़ज़ल ‘शिवाजी’ ठहर गई है।
#छत्रपाल
परिचय : छत्रपाल शिवाजी भोलेनाथ के अनन्य भक्त कवि हैं। आप सागवाडा के जिला डूँगरपुर (राजस्थान) में रहते हैं।
बढ़िया
नैतिक पतन के दौर में संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार पर प्रहार करती सुन्दर रचना।