जापान से सीखें वक्त की पाबंदी

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vaidik
आज हमारे अखबारों में एक दुर्लभ दृश्य मुखपृष्ठ पर छपा है। जापान की एक सरकारी कंपनी के चार अधिकारी सिर झुकाए हुए जनता से माफी मांग रहे हैं। वे सरकारी अधिकारी माफी इसलिए मांग रहे थे कि उनका एक कर्मचारी निश्चित समय से 3 मिनिट पहले अपनी सीट पर से उठकर चला गया था। वह 7 महिने में 26 बार ऐसा कर चुका था। जो सरकारी कर्मचारी अपना काम नियत समय से पहले बंद कर देता है, वह देश का नुकसान करता है। समय की पाबंदी का यह भाव मैंने चीन और जापान में कई बार देखा। एक बार चीन में मुझे कंप्यूटर बनानेवाली सबसे बड़ी फेक्टरी में उसके मैनेजर साहब ले गए। लगभग आधे घंटे तक हम लोग घूमे। मैंने धोती-कुर्ता पहन रखा था और शक्ल-सूरत से तो मैं भारतीय था ही। इसके बावजूद वहां एक भी चीनी कर्मचारी ने आंख उठाकर मेरी तरफ या उस मैनेजर की तरफ देखने की कोशिश तक नहीं की। मैंने मैनेजर से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो उसने मुझे बताया कि हर मजदूर की मेज पर मीटर लगा हुआ है। यदि वह एक-दो मिनिट भी इधर-उधर देखेगा या बात करेंगा तो उस मीटर से पता चल जाएगा कि दिन भर में उस मजदूर के उत्पादन में कितनी कमी आई है। वह हमसे बातें करके अपनी मजदूरी क्यों कटवाए ? जापान के कई शहरो में मैं रेल से आता-जाता रहा। उनकी रेलों के जाने और आने की समय-सूची पढ़कर मैं दंग रह गया। किसी रेल के चलने का समय सुबह 8 बजकर 7 मिनिट, किसी रेल के पहुंचने का समय शाम को 6 बजकर 23 मिनिट ! मैं सोचने लगा कि यह 7 और 23 मिनिट क्या बला है ? लेकिन सारी ट्रेनें बिल्कुल उसी समय पर वहां चलती और पहुंचती हैं, जो समय-सूची में लिखा है। ऐसा नहीं है कि चीन, जापान, यूरोप और अमेरिका के लोग ही वक्त के पाबंद होते हैं। लगभग 60-62 साल पुराना एक वाक़या मुझे याद आ रहा है। इंदौर में आर्यसमाज के स्वामी विद्यानंदजी विदेह प्रातःकाल 4 बजे योगाभ्यास करवाया करते थे। जिन सज्जन की हवेली में वह योगाभ्यास चलता था, वे एक दिन चार बजकर पांच मिनिट पर पहुंचे लेकिन स्वामीजी ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया। ठीक चार बजे वे उस सभागृह के दरवाजे बंद कर देते थे। ऐसा कठोर अनुशासन और समयबोध यदि देश के आम नागरिकों में उत्पन्न हो जाए तो भारत को विश्व-शक्ति बनने से कौन रोक सकता है ?
                                  #डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।