इस भीषण तपती गरमी में एक अद्भुत शीतल कल्पना हो चली,खुली आँखों ने एक प्यारा स्वप्न दिखाया,और मैं शरद ऋतु की प्रभात बेला में तुम्हारे संग सैर पर निकल चली। हाथों में डाले हाथ लहराते हुए सुबह की हल्की गुलाबी ठंड…।एक ‘हरश्रृगांर के पेड़’ पर बरबस दृष्टि चली गई…। हरी घास के गलीचे पर पेड़ के फैलाव के अनुरूप पुष्प ऐसे झरकर बिछे थे मानो,हरी घास के प्यार भरे निवेदन पर खुद को पूर्णतः समर्पित कर दिया हो।
मंद शीतल बयार में हरश्रृंगार की समस्त इंद्रियों को वशीभूत कर देने वाली सम्मोहिनी सुगंध से हमारा मन अछूता न रह सका, और हमारे प्रेम का ‘हरश्रृंगार’ प्रस्फुटित होने लगा।
तुम्हारी गोद में अपना सिर रख मेरा ‘पुष्प मन’ ऐसा झरकर बिखर गया जैसे,हरी घास के निवेदन पर हरश्रृंगार ने खुद को समर्पित कर दिया था। पवन के हल्के शीतल झोंके हम पर प्रेम पुष्प वर्षा करते रहे।
सम्पूर्ण वातावरण पक्षियों के कलरव और हमारे नयनों की मूक भाषा से गुंजायमान हो उठा। मुझे अनुमान नहीं था कि,शांत दिखने वाले दो नयनों का ‘हरश्रृंगारिक प्रेम’ जब कुलांचे भरता है,तो इस कदर शोर करता है।
कभी अपलक दृष्टि से तुम्हारा मुझे निहारना और मेरा शरमाकर पलकें झुका लेना..धड़कनों के स्पन्दन को तीव्र कर देता है। मेरे खुले केशों पर स्वतंत्र होकर हरकत करती तुम्हारी उगँलियाँ असीम सुख की अनुभूति करती हैं।
जीवन की उलझनों भरी इस ग्रीष्म ऋतु में तुम्हारा साथ शरद ऋतु में महकते ‘हरश्रृंगार’ की तरह एक नई ऊर्जा देता है,एक नई दिशा देता है। नहीं तो, क्या मेरी आँखें ऐसे स्वप्न की कल्पना कर पाती???
कल फिर किसी नए अद्भुत,असीम, आनंद की अभिव्यक्ति की आशा लिए हमारी ‘हरश्रृंगारिक प्रीत’ वापस घर लौट गई…।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।