अब तो जागो हे इंसान। मत बन तू इतना अंजान। झूठ फरेबी धर्म निरर्थक, मत पालो अब ये शैतान।। भ्रम फैलाना छोड़ो “नीर” अब तुम नहीं रहे नादान।। रहें दिलों में लग्न शीलता, अलग रहे अपनी पहचान।। मन में सच्ची गर भावना, हर राहों पे दिखे भगवान।। घृणा,निरादर करना त्यागो, […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा