जन-जन में लगी होड़, किसका अव्वल नम्बर , कोई नष्ट करे जंगल, कोई छेड़ रहा अम्बर । कचरे से पटी सरिता, छलनी है धरणी का वक्ष, कोई तोड़ रहा *पहाड़* , प्राकृतिक दोहन में दक्ष । मिलावट का कोई नायाब, भ्रष्टाचार कुछ के रग में , ईर्ष्या -द्वेष से ओत-प्रोत, […]
काव्यभाषा
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