आज फिर अर्जी लगी, कान्हा तेरे दरबार में। नीच कर्मों से भी देखो, नहीं है डरता आदमी, पाप की गठरी है लादे, हर कोई फिरता यहीं, माँ-बहिन की आबरू फिर, लुट रही बाजार में।।। आज फिर—- सजता है बाजार देखो, स्वार्थ और फरेब का, लोक और परलोक की, चिंता किसी […]
काव्यभाषा
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मुसाफतों से दिल ये भरता क्यों नहीं इक ठिकाने पर ठहरता क्यों नहीं ======================= क्यों भरोसा करता है अजनबियों पर ठोकरें खा कर सुधरता क्यों नहीं ======================= देखकर इन दर्दमंद मज़लूमों को ज़ालिमों का दिल पिघलता क्यों नहीं ======================= ज़हर देकर मुझको वो बेचैन हैं ज़िंदा है अबतक ये मरता […]