माँ, सुनता हूँ तुम सुंदर थी, पर देखी नही तुम्हारी सुंदरता.. सिवाय, हथेलियों पर उभर आई बर्तन के खुरदरेपन के , याधुँधुआते चौके से मूँदी तुम्हारी आँखों के। माँ, तुम गाती भी हो?.. कभी सुना नहीं तुम्हारा गाना, सिवाय लोरी के.. जो मुझे सुलाने के लिए गाती थी। माँ, तुम […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
रचनात्मकता,खत्म हुई शायद, नकलों का जहाँ,बोलबाला है। झूठे लोगों की,जय-जयकार, सच्चे का मुँह यहाँ काला है। पंगु जहाँ,चढ़ने लगे पहाड़, सज्जन के,मुहँ पर ताला है। जहाँ बैठे भोले,बने सियार समझो,कुछ गड़बड़ झाला है। जहाँ जीते, हारे बैठे हैं, हारों के गले,विजयमाला है। समझ की बहती,नदी नहीं, समझो,अज्ञान का नाला है। […]