कल तक उनकी किलकारी, से आंगन महका करता था। कभी पापा तो,कभी मम्मी, की गोद में बैठा करता था॥ न चीत्कार न कोई हलचल, गहरी नींद में लाल सोया था। देखकर मंजर हर किसी का आज कण-कण रोया था॥ रोंगटे खड़े हो जाते हैं मेरे, उस मंजर के बारे में […]
काव्यभाषा
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