खूब लड़ी मर्दानी बन झांसी वाली रानी बन कब तलक लाचार रहे तू अवंती सी कहानी बन रुकना नही बढ़ती चल धारा प्रवाह सा पानी बन उठा तलवार जुल्म से लड़ नम्र नहीं अब तूफानी बन हे नारी कब तक अपमान सहे तू अब शौर्य की निशानी बन किशोर छिपेश्वर”सागर” […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
“नारी” नम्र,नियम,न्याय,निष्ठा से परिपूर्ण एक अद्भुत निकेतन है! “नारी” संस्कृति,सभ्यता,संवेदना,संकल्प,स्वाभिमान,सम्मान, सद्गुण एवं स्नेह की सर्वश्रेष्ठ संरक्षिका है! “नारी” यानी सदैव क्रियाशील रहना,हलचल करना एवं सदैव नेतृत्व करना! “नारी” तिरस्कार,निरादर,अवहेलना की नहीं बल्कि स्वीकार्य,आदर एवं अपेक्षाओं की प्रतिमूर्ति एवं प्रतीक है! “नारी” बाह्य ख़ूबसूरती में लिपटा लिबास नहीं बल्कि अंतर्मन की […]