पिछली शताब्दी के सातवें दशक में श्री व्ही. शांताराम जी की एक फिल्म आई थी- ‘गीत गाया पत्थरों ने’। यह फिल्म एक मूर्तिकार की प्रेमगाथा पर आधारित थी कि किस प्रकार उसका प्रेम उसकी बनाई मूर्तियों में उजागर होता था। लगभग वही अंदाज ईँट और गारे से साहित्य उपजाते हुए […]
