रत्न विभूषित छम-छम करके,इतना क्यूं ललचाती हो। मेरे वश में नहीं हो फिर भी,मुझको क्यूं पास बुलाती हो॥ मैं गँवार जो गाँव का ठहरा,तेरी कीमत क्या जानूं। जो कहते फिरते हैं सब वो,मैं तो बस उतना मानूं॥ मैं छल से तुझे नहीं चाहता,सच्चाई से आओगी। पता नहीं आओगी या भी, […]