वृहद स्वप्न ले उड़ती पाँखे ! देखी है मैंने वे आँखें !! संमोहन जादू से लज्जित ! निखरे नित नीरज हो विकसित ! नेह भरी अनुराग पल्लवित ! डूबा जग मधुप भीर अतुलित ! काजल रेख रसायन चाखे ! देखी है मैंने वे आँखें !! इनमें न रंज का चिन्ह […]
chaganlala
अग्नि ,मधु विधा ,सामोपासना,प्राणोपासना के द्वारा अतिइन्द्रिय ग्राह्य को इन्द्रिय ग्राह्य बनाने की चेष्टा मानव के जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा रही है इसी कारण ब्रह्म की निराकारिता को खंडित किये बिना तादात्म्य स्थापित करने की गूढ आत्मीय चेतना का रहस्यमयी आभास रसानुभूति है! यह दशा मानवता की उच्चस्तरीय सीढ़ी […]