ज़िंदगी अब इक तंज़ बन के रह गई बिन तेरे दुनिया रंज बन के रह गई नाख़ुदा कौनसी स्याही से मानेगा अश्कों का रंग भी अब सुर्ख़ हो गया बिखर गया हूँ कुछ इस तरह से कि इक टुकड़ा फलक पे दुसरा ज़मीं-दोज़ हो गया रह रह के देखता हूँ मुड़ के पीछे बवंडर लूट के मुझे ख़ामोश हो गया #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 409

हमारे प्रिय नेताजी छीन-झपट कर बैठे न सुधरे जनता से छल-कपट कर बैठे सड़कें ख़राब थी बिजली भी नहीं आती हम बिजली के बटन चट-पट कर बैठे दिमाग़ आज हमारा बहुत ख़राब हुआ घर पर हम पत्नी से खट-पट कर बैठे अब बदला लेने की ठान ली थी इसलिए बाक़ी […]

सुबह आती आवाज़ें शाम आती आवाज़ें दिन और रात आती आवाज़ें वक़्त तक आती आवाज़ें वक़्त को रोकती आवाज़ें आवाज़ों का ट्रैफिक जाम है, क्योंकि हर दिशा से एक साथ आती हैं कई आवाज़ें। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 386

सुना है ज़माने के साथ लोग बदलते हैं शहर में कुछ पीर आजकल भी रहते हैं आँख भरके देखते हैं क़द्र न की जिसने  मचलते हैं क्यों इतना पूँछ के देखते हैं चाँद से बढ़ कर रोशन सादगी जिनकी हर दिन वो शान से बाहर निकलते हैं हुजूम से परे उन पर निगाहें ठहर गई तितलियाँ मँडरातीं हैं शायद महकते हैं उतरे चेहरे सँवार के भी ख़ामोश बहुत जहाँ भर की ख़ुशी आस पास रखते हैं तिरे पीछे तिरि परछाँइयों से की बातें चश्म हैराँ मिरि अक़्स कमाल करते हैं मुंसिफ-ए-बहाराँ तिरि एक नज़र को ‘राहत’ तेरे कूचे से दिन रात गुजरते हैं   #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’   Post Views: 368

जन्नत के बहाने क्यों दोज़ख़ की तरफ़ ले जाते हो ए जिहाद वालों क्यों तुम मासूमो को बरगलाते हों। बताओ कौन से ख़ुदा ने कहा है पाक है क़त्ल-ए-इंसाँ ख़ुदाई में वो अपनी मोहब्बत करने को तुमसे कहता है। हूर की बात तुम करते हो जो जन्नत में मिलेगी पर क्यों छुपाते हो, दोज़ख़ भी न मिलेगा इस ख़ूनी खेल के बाद। इशरत-ए-इंसाँ है मोहब्बत में मिट जाना फिर क्यों नफ़रत में जल के औरों को जलाते हो। साजिशों में क्या रखा हैं गुनाहों के अलावा क्यों तुम इस कायनात में गड़बड़ी फैलाते हो। फ़राइज़ तले गुज़ारिश है तुमसे जिहाद वालों छोड़कर राह-ए-कुफ़्र अमन से ज़िंदगी बिता लो। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 618

कुछ लोग मंदिर को मदिरालय से मस्जिद को मय-ख़ाने से जोड़ गए आस्था से खेला संवेदनाओं को चक्कर में छोड़ गए और नासमझ मनुष्य मंदिर से मदिरालय के मस्जिद से मय-ख़ाने के रिश्ते पर यकीं कर बैठा   #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 401

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।