ज़िंदगी अब इक तंज़ बन के रह गई बिन तेरे दुनिया रंज बन के रह गई नाख़ुदा कौनसी स्याही से मानेगा अश्कों का रंग भी अब सुर्ख़ हो गया बिखर गया हूँ कुछ इस तरह से कि इक टुकड़ा फलक पे दुसरा ज़मीं-दोज़ हो गया रह रह के देखता हूँ मुड़ के पीछे बवंडर लूट के मुझे ख़ामोश हो गया #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 605
rupesh
सुना है ज़माने के साथ लोग बदलते हैं शहर में कुछ पीर आजकल भी रहते हैं आँख भरके देखते हैं क़द्र न की जिसने मचलते हैं क्यों इतना पूँछ के देखते हैं चाँद से बढ़ कर रोशन सादगी जिनकी हर दिन वो शान से बाहर निकलते हैं हुजूम से परे उन पर निगाहें ठहर गई तितलियाँ मँडरातीं हैं शायद महकते हैं उतरे चेहरे सँवार के भी ख़ामोश बहुत जहाँ भर की ख़ुशी आस पास रखते हैं तिरे पीछे तिरि परछाँइयों से की बातें चश्म हैराँ मिरि अक़्स कमाल करते हैं मुंसिफ-ए-बहाराँ तिरि एक नज़र को ‘राहत’ तेरे कूचे से दिन रात गुजरते हैं #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 625
जन्नत के बहाने क्यों दोज़ख़ की तरफ़ ले जाते हो ए जिहाद वालों क्यों तुम मासूमो को बरगलाते हों। बताओ कौन से ख़ुदा ने कहा है पाक है क़त्ल-ए-इंसाँ ख़ुदाई में वो अपनी मोहब्बत करने को तुमसे कहता है। हूर की बात तुम करते हो जो जन्नत में मिलेगी पर क्यों छुपाते हो, दोज़ख़ भी न मिलेगा इस ख़ूनी खेल के बाद। इशरत-ए-इंसाँ है मोहब्बत में मिट जाना फिर क्यों नफ़रत में जल के औरों को जलाते हो। साजिशों में क्या रखा हैं गुनाहों के अलावा क्यों तुम इस कायनात में गड़बड़ी फैलाते हो। फ़राइज़ तले गुज़ारिश है तुमसे जिहाद वालों छोड़कर राह-ए-कुफ़्र अमन से ज़िंदगी बिता लो। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 882