कभी बिस्तर कभी चादर कभी तकया बना लूं मैं
तुम्हारी ज़ात को अपने लिए क्या क्या बना लूं मै
ज़माने का कोइ डर ही न हो मुझको मिरे दिलबर
कनारा कर के दुनया से तुझे अपना बना लूं मैं
कभी दिल चाहता है तुझ में गुम हो कर मैं रह जाऊँ
कभी सोचूं कि तुझको अपना ही साया बना लूं मैं
तकल्लुम में मिरे घुल जाओ तुम शीर व शकर हो कर
तुम्हें मेहबूब अपना अब लब व लहजा बना लूं मैं
निकल कर ऐ अदा जिस से कभी न जाऊँ मैं बाहर
उसे अपने लिए वो प्यारी सी दुनया बना लूं मैं।
#डॉ औरीना ‘अदा’
ओरीना अब्बासी
तखल्लुस “अदा”
आगाज ए शायरी 1997
शिक्षा :एम ए (अर्थ शास्त्र)
एम ए (समाज शास्त्र)
एम ए (राजनीति शास्त्र)
एम ए अंग्रेज़ी साहित्य
एम ए msw (सोशल वर्क)
बी:एड :पी एच डी
उर्दू अदीब ‘माहिर’ कामिल ‘मोअल्लिम (AMU)Cig सर्टिफिकेट इन गाइडेंस एवं काउंसिलिंग
पद
शिक्षिका’ एन जी ओ सेक्रेटरी ‘ब्यूटीशियन।
पुरस्कार
1 सृजन कामना पुरस्कार
2 शायर ए वतन
3 महेश जोशी गीतकार सम्मान
4 हजरत गाजी गाजीपुर सम्मान
5 कला निधि शिक्षक सम्मान
उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान
लकब :शायरा ए वतन
शान ए भोपाल
मजमूआ ए कलाम
अदा ए सुखन
व विभिन्न गजल एवं काव्य संग्रह में गजल प्रकाशित
पता भोपाल(मध्यप्रदेश)