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अधूरा नर,वैसे बिन नारी।
सूना घर ज्यों,बिन फुलवारी ।।
न हो अधम तू,बस मिथ्या में।
क्यों बनता है,अत्याचारी।।न जन्म तेरा,होता रे संभव।
दुनिया मिलती,तुझको दुर्लभ।।
न ही पाता,माँ की ममता।
न होता सुत,आज्ञाकारी।।सुख दुःख का,साथी न होता।
नखरे तेरे, कोई कभी न ढोता।।
श्वेत श्याम फिर,जीवन तेरा।
कोई न होती,बाट निहारी।।यूँ सीप से मोती,हरने वाले।
नन्ही कली को,मसलने वाले।।
कैसे चलेगी,फिर ये दुनिया।
जब न होगी,बिटिया प्यारी।।अधूरा नर,वैसे बिन नारी।
सूना घर ज्यों,बिन फुलवारी।।*शशांक दुबे
लेखक परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |