सुखदेवसिंह कश्यप स्मृति पुरस्कार डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल को प्रदत्त

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इंदौर। माँ सरस्वती का आराधक, साहित्य सर्जक इस संसार से विदा होकर भी अपने सृजन-कृतित्व के कारण अपनी यादों के साथ जीवन्त रहता है, यह बात राष्ट्रीय कवि एवं श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के सभापति सत्यनारायण सत्तन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहीं। प्रसंग था समिति के पूर्व प्रबंध मंत्री साहित्यकार सुखदेव सिंह कश्यप की स्मृति में प्रथम पुरस्कार प्रदान करने का, जो वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल को प्रदान किया गया। कार्यक्रम समिति में दिनांक 20 मई को हुआ, जिसमें काफ़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे। श्री सत्तन ने पुलिस सेवा में रहे स्व. कश्यप से सम्बन्धित कई प्रसंग सुनाए कि किस प्रकार डन्डे वाला कलमकार बना। उन्होंने श्री शुक्ल को लघुकथा के माध्यम से विराट स्वरूप प्रस्तुति वाला साहित्यकार बताया। ‘वीणा’ के सम्पादक राकेश शर्मा ने साहित्य सर्जन में परिवेश का प्रभाव पर बात की व डॉ. शुक्ल के लेखन की प्रशंसा की।
आरम्भ में माँ सरस्वती अर्चना दीप प्रज्ज्वलन पश्चात् डॉ. शशि निगम ने माँ की अर्चना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन कर रहे गिरेन्द्रसिंह भदौरिया ‘प्राण’ ने स्वागत उद्बोधन दिया व पुरस्कार समिति के संयोजक रामचन्द्र अवस्थी ने इस सन्दर्भ में बताया कि प्रतिवर्ष कश्यपजी की स्मृति में एक साहित्यकार को सम्मानित किया जायेगा, जिसमें शॉल, श्रीफल, सम्मान पत्र व ग्यारह हज़ार की राशि होगी। स्वागत भाषण कार्यवाहक प्रधानमंत्री घनश्याम यादव ने दिया एवं सम्मान पत्र का वाचन प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने किया। आभार डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने व्यक्त किया। सम्मान प्रदान करते समय मंचासीन साहित्यकारों के अलावा पुस्तकालय मंत्री अरविन्द ओझा व अन्य मंत्री भी उपस्थित थे। स्वागत गोपाल माहेश्वरी, मोहन रावल, सूर्यकान्त नागर, चन्द्रभान भारद्वाज आदि ने किया। इस अवसर पर अनेक सुधीजन उपस्थित थे। ज्ञातव्य है कि डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल की 750 से अधिक लघुकथाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। देश की 8 भाषाओं में कई का अनुवाद हो चुका है और उन्हें कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मान मिल चुके हैं।

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