*पुस्तक समीक्षा*
*शीर्षक- दिवास्वप्न*
*लेखक गिजूभाई* *बधेका(1931)*
*अनुवाद -काशीनाथ त्रिवेदी (2004)*
*पृष्ठ -85 /मूल्य 185*
*आय एस बी एन नं-81-237-0381-9*
*प्रकाशन वर्ष- 2004*
*प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया न्यू दिल्ली*
*दीवास्वप्न* नाम के अनुरूप दिन का स्वप्न एक काल्पनिक कथा है। गिजुभाई ने शिक्षा संबंधी भावाभिव्यक्ति काल्पनिक शिक्षक लक्ष्मीशंकर के माध्यम से गूढ़ और सार्थक शब्दों के साथ सहज भाषा में दीवास्वप्न के माध्यम से की है। चार खण्डों में प्रथम प्रयोग और प्रयास, द्वितीय प्रगति, तृतीय छ: महीने की मेहनत और अंत में सफलता में बांटकर बालमन की परिस्थितियों और समग्र दृष्टिकोण को आयाम किया है।
*बालादेवो भव:* की मानसिकता से लिखी इस पुस्तक में पारम्परिक शिक्षा, अनावश्यक बोझ, नीरसता और धूल-धूसरित शालाओं में उत्साह, जीवंतता, और नवाचार भरने के लिए शिक्षक लक्ष्मीशंकर ने बेहतरीन प्रयोग और अनवरत प्रयास किए हैं।
’परिवर्तन प्रकृति का नियम है’, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए, इन्होंने शिक्षा प्रणाली और शिक्षक की उदासीनता को बदलने के लिए नवाचार प्रयोगों से शिक्षा को बेहतर बनाने के कई सहज उदाहरण प्रस्तुत किए। बाल मन को समझना, उनके अनुरूप शालाओं में बदलाव, साथ ही, रटत प्रणाली की अपेक्षा व्यवहारी प्रणाली पर ज़ोर दिया है। कई विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी शिक्षक लक्ष्मीशंकर सकारात्मक पहलू के साथ हर दिन की शुरुआत नए रूप में करते थे। अन्य शिक्षक की हँसी का पात्र, प्राचार्य की डांट, आर्थिक तंगी और कभी-कभी नए प्रयोग की विफलता पर भी लक्ष्मीशंकर ने कभी हार न मानी। वे दोगने उत्साह से सभी विषयों को सरलता से व्यवहार में लाने के लिए प्रयासरत रहते। हिंदी को बातों-बातों में, गणित और भूगोल खेल-खेल में तथा विज्ञान को प्रकृति से जोड़कर उनके सिखाने के तरीके ने छ: माह का समय लिया परंतु उसके बाद बच्चों के बौद्धिक स्तर और कार्यप्रणाली में चमत्कारिक परिवर्तन आया।
मुझे इस कथा में सबसे आकर्षक पहलू बच्चों के द्वारा प्रस्तुत एकांकी और कक्षा के वे दृश्य, जिनमें बच्चों द्वारा बौद्धिक, रासात्मक स्पंदन दिखाई दिया। कथा काल्पनिक है पर सच्चाई यथार्थ है।
कहीं पर गम्भीर होते हुए भी कुछ दृश्य हँसाते हुए मनोरंजन करने वाले नवाचार दस्तावेज़ हैं।
अंत में जब प्रयोग सफल हुए, तब मेरे पसंदीदा पात्र, लक्ष्मीनारायण पर हँसने वाले शिक्षक भी अब इस बदलाव और नई प्रणाली में रुचि दिखाने लगे।
यह प्रयोग छोटी कक्षाओं में तो सार्थक हो सकता है परंतु बड़ी कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बैठाकर इन प्रयोगों का प्रयास उतना प्रभाव न दे सकेगा।
विश्व स्तरीय शिक्षा शास्त्र में अपना योगदान देने वाले गिजुभाई ने बाल मन की झांकी की सुंदर प्रस्तुति गूढ़ और सार्थक शब्दों से कथा में की है।
कथा पढ़ते समय प्रयोगशीलता, सरलता और सरसता बनी रही।
आपको यदि इस कथा का आनंद लेना है तो गिजुभाई की कक्षा में बैठना यानी दिवास्वप्न पढ़ना पड़ेगा ।
*दीवास्वप्न की उपलब्धता हेतु पता-नेहरू भवन 53 वसंत कुंज इंस्टीट्यूशनल एरिया न्यू दिल्ली*
*अमेज़न– ऑनलाइन ख़रीदी*
#संध्या रामप्रसाद पाण्डेय,
अलीराजपुर (मध्यप्रदेश