उम्र की सुराही से,
रिस रहा है
लम्हा-लम्हा,
बूँद-बूँद
और,
हमें मालूम तक नहीं पड़ता l
कितनी स्मृतियाँ,
पुरानी किताब के
जर्द पन्ने की तरह,
धूमिल पड़ गई
हमें मालूम तक नहीं पड़ता l
बिना मिले,बिना देखे
कितने अनमोल रिश्ते,
औपचारिकता में
तब्दील हो जाते हैं,
हमें मालूम तक नहीं पड़ताl
हमें मालूम तक नहीं पड़ता
कल कौन,कब-कहाँ,
साथ छोड़ जाएगा
या,
कोई कब
कहाँ नया
हमसफ़र
मिल जाएगाl
जीवन ऐसा ही है,
थोड़ा ,पानी के उपर
थोड़ा
पानी के भीतर…,
हमें मालूम तक नहीं पड़ताl
#गौतम कुमार सागर
परिचय : वरिष्ठ प्रबंधक के तौर पर गौतम कुमार सागर, वडोदरा(गुजरात) में बैंक ऑफ बड़ौदा में कार्यरत हैं। श्री सागर बीस वर्ष से हिन्दी साहित्य में लेखनरत हैं। अब तक २ एकल काव्य संग्रह,३ साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हैं तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशन होता रहता है। अखिल भारतीय स्तर पर निबंध,कहानी एवं आलेख लेखन में पुरस्कृत हुए हैं। अटलादरा(वडोदरा)में आपका निवास है।