मोहब्बत समझते नही

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तेरी यादों को अब तक,
दिल से लगाये बैठा हूँ।
सपनो की दुनियां में,
अभी तक डूबा हुआ हूँ।
दिलको यकीन नही होता,
की तुम गैर की हो चुकी हो।
और हकीकत की दुनियां से,
बहुत दूर निकल गई हो।।

मूनकिन नहीं है की,
हर मोहब्बत परवान चढ़ेंगी।
और दिल की गैहराइयो में
शायद तुम बसोगी।
तुम तो उसे दिल से,
चाह रहे हो जनाम।
जिस की निगाह तो,
किसी और पर लगी हैं।।

उसे लुभाने के लिए,
क्यों दिलसे खेल रही हो।
किसी और कि मोहब्बत को,
अपने मैं देख रही हो।
और उन प्रेमियों की दुनियां में,
अपने को भी जोड़ रही हो।
जबकि वो तेरे को,
दिल से चाहता नहीं है।।

देखा ऐसा जाता है,
इस जमाने में लोगो।
मोहब्बत किसी और से,
दिललगी किसी और से।
परन्तु अपनी निगाहों से,
दोनों को घायल करते है।
और प्यार मोहब्बत को,
सिर्फ खेल समझते हैं।।

क्योंकि प्यार का मतलब,
ये योग जानते नहीं।
फिर भी मोहब्बत की बातें,
मजाक में करते हैं।
और प्यार मोहब्बत को,
दुनियाँ में बदनाम करते है।
क्योंकि ऐसे लोग,
मोहब्बत को समझते नही।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)

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