नहीं रहेगा आपस में,
मेल जोल इंसानो में।
तो कहां से जिंदा रहेगी,
इंसानियत अब दिलो में।
रिश्ते नाते भी अब,
मात्र नाम के रह गये।
न आना न जाना घर पर,
बस दूर से ही नमस्कार।।
जब दूरियां बनाकर ही,
सभी को रहना पड़ेगा।
तो कहां से भाईचारा,
दिलो में जिंदा बचेगा।
जिसके कारण समाज का,
विघटन निश्चित ही होगा।
और एकाकी जीवन अब,
सभी को जीना पड़ेगा।।
उजाड़ गई बस्तियाँ,
कोरोना के चक्कर में।
बची नही आत्मीयता,
एक दूसरे के दिलो में।
सभी को एक ही बात,
सभी लोग समझा रहे।
बना कर दूरियां रहो,
सब हिल मिल कर।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)