कोरोना संकट पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने 'वर्तमान परिदृश्य और हमारी' भूमिका विषय पर बीते 26 अप्रैल को संघ मुख्यालय में अपना विचार रखते हुए कहा कि कोरोना से पूरी दुनिया जूझ रही है। जीवन तो चल रहा है, संघ का काम चल ही रहा है, बस उसका स्वरूप बदल गया है। घर में रहना ही इलाज है। स्वयं के प्रयास से अच्छा बनना और समाज को अच्छा बनाना ही अपना काम है। एकांत में आत्मसाधना और परोपकार संघ कार्य का स्वरूप है। केवल संघ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी कुछ बातें स्पष्ट हैं। अपने स्वार्थ की पूर्ति या अपना डंका बजाने के लिए हम काम नहीं कर रहे। जिसे दुनिया देख रही है। अहंकार को त्याग कर बिना श्रेय और भेदभाव के काम करना है। दुनिया के दुखों को दूर करना संघ का काम है। बताने से पहले खुद स्वास्थ्य नियमों और नागरिक अनुशासन का पालन करें। जो लोग इसका पालन नहीं कर रहे हैं, वहां कोरोना के मामले देखे जा रहे हैं। कोरोना से डरना नहीं, डरने से संकट और बढ़ता है। हम इसलिए काम करते हैं क्योंकि ये देश हमारा है। हमें सेवा करते हुए सावधान भी रहना जरूरी है।
नागपुर से सीधे प्रसारण में सरसंघचालनक ने अपने उदगार में कही समाज की सर्वांगीण उन्नति हमारी प्रतिज्ञा है इसलिए जब तक काम पूरा नहीं होगा तब तक हमें सतत भाव से यह सेवाकार्य करते रहना है। जिन्हें सहायता की आवश्यकता है ये सभी अपने हैं, उनमें कोई अंतर नहीं करना। अपने लोगों की सेवा उपकार नहीं है वरन हमारा कर्तव्य है। दरअसल कोरोना के कारण पर्यावरण शुद्ध हो गया है, लेकिन यह बना रहे हमें इसका विचार करना होगा। जैविक तरीकों पर बल देना होगा। पानी की बर्बादी रोकना, प्लास्टिक से मुक्ति, वृक्षा रोपण करना होगा। इस संकट के बाद हमको एक नए विकास के माडल पर विचार करना होगा। शासन के साथ जनता को स्वावलंबन करना होगा। यहां की बनी वस्तुओं, स्वदेशी का आचरण करना पड़ेगा स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना होगा, विदेशी वस्तुओं पर निर्भर नहीं रहना है। चुनौती भारत के लिए एक अवसर भी है।
संघ प्रमुख ने दुखी मन से कहा इस विपदा के दौर में महाराष्ट्र के पालघर में हुई संतों की हत्या उपद्रवी लोगों की भीड़ ने की है। इसका क्लेश सबके मन में हैं। घड़ी में धैर्य रखकर सारी बातें करनी चाहिए। उसे लेकर बयानबाजी हो रही है। लेकिन ये कृत्य होना चाहिए? क्या, कानून हाथ में किसी को लेना चाहिए? पुलिस को क्या करना चाहिए? हमें अभी इन पर ध्यान ना देते हुए देशहित में सकारात्मक बनकर रहना चाहिए। घाटित जघन्य अपराध के लिए कानून अपना काम करेंगा।
तबलीगी जमात से जुड़े विवाद की तरफ इशारा करते हुए संघ प्रमुख आगे बोले कि अगर कोई डर या क्रोध से कुछ उलटा-सीधा कर देता है तो सारे समूह को उसमें लपेटकर उससे दूरी बनाना ठीक नहीं है। भड़काने वालों की कमी नहीं है और इसका लाभ लेने वाली ताकतें भी हैं। जिस तरह कोरोनावायरस का फैलाव अपने देश में हुआ है उसकी एक वजह यह भी है। श्री भागवत ने कहा, भारत तेरे टुकड़े होंगे..ऐसे कहने वालों से हमें बचना है, सावधान रहना है। हमारे मन में प्रतिक्रिया के रूप में कोई क्रोध नहीं होना चाहिए। सभी लोग भारत माता की संतान हैं। समाज के प्रमुख लोगों को यह बात देशवासियों को समझाने की जरूरत है। समाज में वैमनस्य का भाव नहीं पैदा करना है। समाज का सर्वागीण विकास हमारी प्रतिज्ञा है।
अंतत: संघ प्रमुख ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत ने जिस दवा के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था उसे दुनियाभर के देशों के मदद मांगने पर हटा दिया गया। हम लोग मदद में भी भेद नहीं करते है जो मदद मांगेगा हम उसकों मदद देंगे। दुनिया की भलाई के लिए खुद थोड़ा नुकसान उठाकर भी दूसरे देशों की मदद के लिए इसको भेजी है। भारत का सर्वदा ऐसा ही स्वभाव रहा है। सरकार के आयुष मंत्रालय ने जैसा काढ़ा बताया है वैसा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पीएं। अतएव पूर्णबंदी की पाबंदी, शारिरीक दूरिया का पालन, मास्क का जरूरी इस्तेमाल और कोरोना योद्धाओं का दिल से सम्मान अवश्य करिए।
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक