माता आओ मेरे अंगना
माता मेरी बुला रही है।
मेरी माता जगजननी को
मैया कहके झूला रही है।
मां में देखूं स्वरूप तुम्हारा
बहन में ममता पाई है
हर नारी में जगदम्बा की
मूरत एक समाई है।
घूम रहे हैं महिषासुर
चौकों में बाज़ारों में
मानवता को तार करते
जिल्लत के ठेकेदारों में
द्रौपदी का चीरहरण मां
रोज करता दुःशासन है
कृष्ण नही है कोई यहां अब
दूर्योधन का धृष्ट वाचन है।।I
आओ माते रूप धरो अब
धरा मधु कैटभ से मुक्त करो
रक्त बीज से व्यभिचारियों को
पूण्य धरा से विमुक्त करो।।
जगमग ज्योति जले भारत मे
समरसता सद्भाव रहे
श्रद्धा भक्ति में डूबे रहे
मन मे नव उत्साह रहे।।
भारत वर्ष अखण्ड रहे
धरा अन्नपूर्णा युक्त रहे
प्रेम दीप जले चहुँ ओर
धन्य धान्य भरपूर रहे।।
#अविनाश तिवारी
जांजगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)