मुंबई |
मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति माननीय श्री चंद्रशेखर धर्माधिकारी जी का दो जनवरी को निधन हो गया। वे ijfcec/ bd/kdlfldb ks Ovr गांधीवादी चिंतन और राष्ट्रवादी विचारधारा के एक सशक्त हस्ताक्षर थे। वे राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रबल समर्थक और भारतीय भाषा-प्रेमी थे, जो आजीवन महात्मा गांधी के मार्ग पर चलते हुए जनतांत्रिक मुल्यों के अनुरूप देश के विकास के लिए हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के कार्यों में लगे रहे। उनका जाना भारतीयता की ही नहीं भारतीय भाषाओं के अभियान की भी अपूर्णीय क्षति है।
उनसे मेरी कई बार भेंट हुई । अपने शोध कार्य के सिलसिले में मेरा उनके आवास पर भी जाना हुआ। राजभाषा के संवैधानिक प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में और जनतांत्रिक मूल्यों के सबंध में संविधान और विधान में भाषायी उपबंओं को लेकर भी मेरी उनसे लंबी चर्चा हुई थी । तब उन्होंने मुझे यहां तक कहा था, ‘नागरिकों के कानूनी अधिकारों के संबंध में आपने जिन विधिक बिंदुओं को रेखांकित किया है, आज से पहले किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया।’ जब मैंने उनसे इन बिंदुओं को सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका के माध्यम से उठाने की बात कही तो उन्होंने कहा था, ‘ इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका डालने पर भी कोई लाभ हो सकेगा इसमें मुझे संदेह है। इसलिए यह उचित होगा कि इन मुद्दों पर जनजागरण किया जाए और देश की जनता को जगाया जाए। यह बताया जाना चाहिए कि देश के विकास के लिए और देश की करोड़ों प्रतिभाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए और उन्हें न्याय दिलवाने के लिए देश की भाषाएं क्यों जरूरी है ?’ उन्होंने शासन – प्रशासन और न्यायपालिका में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को लेकर उत्पन्न नकारात्मक स्थिति संबंधी कई कटु अनुभवों को भी साझा किया था। उनका कहना था, ‘ यह उचित होगा कि आप भारतीय भाषाओं के प्रसार के लिए जनजागरण करें।’ उनकी प्रेरणा और उनके इन्हीं सुझावों से पहले मुंबई हिंदी सम्मेलन बना जो आगे चल कर वृहत स्वरूप में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के रूप में सामने आया।
उन्होंने यह भी बताया था, ‘स्वतंत्रता के पश्चात जिस दिन जिस दिन महात्मा गांधी ने बीबीसी के संवाददाताओं को यह कहा था दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेजी भूल गया है उस दिन के बाद से मैंने भी विदेशों में आवश्यकतानुसार और कोर्ट को छोड़कर कहीं भी अंग्रेजी का प्रयोग नहीं किया। न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी एक सच्चे गांधीवादी भारतीय भाषाओं कि और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रबल समर्थक थे। वे वृद्धावस्था व खराब स्वास्थ्य के बावजूद हिंदी और भारतीय भाषाओं से संबंधित कार्यक्रमों में पहुंचते थे। मुंबई में अनेक कार्यक्रमों में और अधिक मंचों पर उनके वक्तव्य सुनने को मिलते रहे। ‘मुंबई हिंदी सम्मेलन’, जो बाद में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ बना, उस सम्मेलन में भी न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी जी को मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया और उऩ्होंने वहाँ पहुंच कर विभिन्न क्षेत्रों के सहभागियों का मार्गदर्शन किया था। वे एक सच्चे राष्ट्र-प्रेमी तथा सशक्त व स्पष्ट वक्ता थे। अनेक मंचों पर जहाँ बड़े-बड़े मंत्री उपस्थित होते थे वे उन्हें उनके कर्तव्य का बोध करवाने से न चूकते थे।
न्यायमूर्ति माननीय श्री चंद्रशेखर धर्माधिकारी जी का निधन न केवल भारतीय भाषाओं के आन्दोलन की एक अपूर्णीय क्षति है बल्कि सिद्धांतवादिता, स्पष्टवादिता, सादगी, राष्ट्रवादिता, न्यायिक मूल्यों, जनतांत्रिक मूल्यों की भी अपूर्णिय क्षति है। व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए भी उनका निधन एक अपूर्णीय क्षति है। एक ऐसा जीवन-दीप जिसने करोड़ों को दिशा दिखाई वह बुझ गया लेकिन विचारों का जो प्रकाश उन्होंने दिया उसके माध्यम से वे हमें सदैव प्रेरित करते रहेंगे और हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
उनकी प्रेरणा से उपजे ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के सभी सदस्यों व सहभागियों सहित सभी भारत व भारतीय-भाषा प्रमियों की ओर से न्यायमूर्ति स्वर्गीय श्री चंद्रशेखर धर्माधिकारी जी को सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।