संसद की गरिमा आज इतनी लाचार है उसके ही नुमांइदे करते आज उसका बलात्कार है। गूंजती थी कभी जहां, पुरोधाओं की गंभीर -वाणियां. आज है वहां केवल, कर्ण- कटु-भद्दी गालियां। खेल-घर है , खेलते सब, जाति- धर्म के कार्ड से. गरीब- दलित-आरक्षण की, होती बहुत कबड्डियां। सर्वोच्च -पद भी अब, […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
जब ज़िन्दा था तो काश तुम सीख लेती जीने का क़ायदा शम-ए-तुर्बत१ की रौशनी में ग़मज़दा होने का क्या फ़ायदा इख़्लास-ओ-मोहब्बत२ जुरूरी है मुख़्तसर३ सी ज़िंदगी में अपना बनाने को शर्त-ए-मुरव्वत४ रखने का क्या फ़ायदा सर-ए-दीवार५ रोती रह ज़ालिम मैं लौट के नहीं आने वाला क़ब्रनशीं के साथ ख़्वाब-ए-क़ुर्बत६ सजाने का क्या फ़ायदा तह-ए-क़ब्र७ तो सुकून-बख़्श मुझे […]
