मीलों कोई छांव नहीं, बागों वाला गांव नहीं, पोखर,नहर, कुएं, रीते-रीते देखे हैं हरे भरे पेड़ काट, धरती को लिया बाँट, खेतो में ट्यूबवेल खाली लगे देखे हैं। पर्वतों को काट-काट, बना दिए रेल मार्ग, धरती डगमगाती, भूकंप आए देखे हैं। वृक्ष को लगाओ आज, धरती श्रृंगार करे, फूल-फल अंग […]
काव्यभाषा
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