अपनी तमन्नाओं पे शर्मिंदा क्यूँ हुआ जाये एक हम ही नहीं जिनके ख़्वाब टूटे हैं इस दौर से गुजरे हैं ये जान-ओ-दिल संगीन माहौल में जख़्म सम्हाल रखे हैं नजर उठाई बेचैनी शर्मा के मुस्कुरा गयी ख़्बाब कुछ हसीन दिल से लगा रखे हैं दियार-ए-सहर१ में दर्द-शनास२ हूँ तो क्या बेरब्त उम्मीदों में ग़मज़दा और भी हैं अहद-ए-वफ़ा३ करके ‘राहत’ जुबां चुप है वर्ना आरजुओं के ऐवां४ और भी है शब्दार्थ: १. दियार-ए-सहर – सुबह की दुनियाँ २. दर्द-शनास – दर्द समझने बाला ३. अहद-ए-वफ़ा – प्रेम प्रतिज्ञा ४. ऐवां – महल # डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 273
jain
सर उठा कर चल नही सकता बीच सभा के बोल नही सकता घर परिवार हो या गांव समाज हर नजर में घृणा का पात्र हूँ ! क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! जिंदगी खुलकर जी नहीं सकता चैन की नींद कभी सो नही सकता हर एक दिन रात रहती है चिंता जैसे दुनिया में कोई श्राप हूँ ! क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! दुनिया के ताने कसीदे सहता, फिर भी मौन व्रत धारण करता, हरपल इज़्ज़त रहती है दाँव पर, इसलिए करता ईश का जाप हूँ ! क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! जीवन भर की पूँजी गंवाता फिर भी खुश नहीं कर पाता रह न जाए बेटी की खुशियो में कमी निश दिन करता ये आस हूँ क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! अपनी कन्या का दान करता हूँ फिर भी हाथजोड़ खड़ा रहता हुँ वरपक्ष की इच्छा पूरी करने के लिए जीवन भर बना रहता गूंगा आप हुँ क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! देख जमाने की हालत घबराता बेटी को संग ले जाते कतराता बढ़ता कहर जुर्म का दुनिया में दोषी पाता खुद को आप हूँ क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !! #संजय जैन परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के […]