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माँ, मैं कुछ कह रही हूँ,
क्या ,तुम सुन रही हो ? तुम चाहती हो मैं, पढ़ूँ लिखूँ,
आगे बढ़ूँ,
नौकरी करूँ,
पैसा कमाऊँ,
नाम भी कमाऊँ।
ताकि ,तुम शान से कह सको:
कि, यह “मेरी बेटी है”।
सुनो माँ,
तुम घर में रहती हो,
क्या ,कभी यह सोचती हो,
बाहर घर के निकलती हैं,
जब तुम्हारी बेटियाँ।
नज़रें गढ़ी होती हैं,
हैवानों की,
भेड़ियों की,
राक्षसों की।
जिस्म पर,
इज्जत पर,
अस्मत पर,
बदन पर,
सच पूछो तो,
एक-एक अंग पर।
नोच डालते हैं,
कुरेद डालते हैं,
जला डालते हैं,
बेच डालते हैं,
तुम्हारी आन बान और शान को,
माँ,
वो भेड़िए,
माँ यह सब रोज होता है,
हर पल होता है,
क्यों नहीं सिखाती,
तुम मुझे,
ताकतवर बनो!
जवाब दो!
लड़ो!
कुचल डालो!
बदल डालो!
नोच डालो!
खत्म कर दो!
हाँ माँ, मैं पल-पल,
आबरु के साथ,
कैसे खेलने दूँ?
कैसे सहन करूँ?
घिनौनी निगाहों को,
दरिंदगी को,
वहशीपन को,
माँ,
मैं चाहती हूँ,
लड़ना,
बदलना,
जीतना,
स्वयं को भी समाज को भी,
अपनी बुद्धि और बल से,
इज्ज़त के साथ।
माँ मेरी मदद करना,
मुझे तुम्हारी जरूरत है।
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।
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