लगते मुझको डॉन सखी

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kuldeep khadana
पति के आगे रहती हूँ मैं,अब बिल्कुल ही मौन सखी।
कभी-कभी तो ग़ुस्से में वो,लगते मुझको डॉन सखी॥
पहले लाड़ लड़ाते थे वो,अब रहते हैं बदले-बदले।
याद नही हैं आज उन्हें कुछ,भूल गए सब वादे पिछले॥
खुद से दूर नहीं करते वो,पल भर को भी फोन सखी।
कभी-कभी तो ग़ुस्से में वो,लगते मुझको डॉन सखी॥
पहले खुद ही रखते थे वो,मेरी ध्यान में सब बातों को।
प्यार भरी थी उनकी नजरें,हाथ में रखते थे हाथों को॥
पुरानी गाड़ी जैसे कोई,होती हो ना ऑन सखी।
कभी-कभी तो गुस्से में वो,लगते मुझको डॉन सखी॥
होंठों को वो कली बताते,आँखें उनका दर्पण था।
जाने अब वो कहाँ गया,पहले जो आकर्षण था॥
वो बदले या मैं बदली हूँ,जाने बदला कौन सखी।
कभी-कभी तो गुस्से में वो,लगते मुझको डॉन सखी॥

#कुलदीप खदाना

परिचय : कुलदीप खदाना पेशे से फौजी हैं। इनके पिता-बांके सिंह भी फौजी(अब स्व.)रहे हैं। इनकी जन्म तारीख-२-फरवरी-१९८७ और जन्म स्थान-बुलन्दशहर है। वर्तमान पता-पोस्ट-खदाना,जिला-बुलन्दशहर(उत्तर प्रदेश) है।बी.ए. तक शिक्षित श्री खदाना का कार्यक्षेत्र-पैरा मिलिट्री (एसएसबी)है। आपके लेखन का उद्देश्य-शौक ही है।

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