इन्दौर। श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के साप्ताहिक कार्यक्रम ’सृजन विविधा’ में पढ़ी गईं अधिकांश रचनायें माॅं को समर्पित रहीं, जिनमें नवरात्रि की झलक दिख रही थी। डाॅ. शीला चंदन की रचना ’वर दे’, डाॅ. आरती दुबे की रचना ’मैं संस्कृति हूॅं, देश की आत्मा हूॅं’ और जयंत तिकोटकर का मधुर गीत ’माॅं की पावन आरती’ खूब सराही गई। इसी तरह डाॅ. मनीष दवे की रचना ’उल्टी गंगा’ हिन्दी भाषा तथा संस्कारों को समृद्ध करने पर आधारित रही। हटेसिंह राठौर ने भी ’माॅं महिमा’ पर अपनी भावपूर्ण रचना पढ़ी। दिनेश तिवारी की रचना ’आदमियत कभी नहीं मरती’ और दिलीप नेमा की ’शपथ’ मातृभाषा हिन्दी का मान बढ़ायेंगे, प्रेरणदायी रचना रही। जितेन्द्र मानव ने अपनी कविता ’लक्ष्य’ में बताया कि सृजन विविधा का लक्ष्य ही हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध करना है। अरविन्द जोशी ने ’रचना का सृजन मन में उपजे विचारों को स्वरूप देने पर होता है’ सुनायी। डाॅ. पुष्पेन्द्र दुबे का व्यंग्य ’सुब्रतो बोस की गजल’ और व्यंग्य आधारित संजय तराणेकर की रचना ’हे प्रयोगधर्मी अगर तुम रंगकर्मी होते’ सराही गई। डाॅ. अर्पण जैन की भावपूर्ण रचना ’बेटियों के नंगे घाव’ पसंद की गई। सुधीर लोखंडे ने समसामयिक रचना पाठ किया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रधानमंत्री श्री अरविन्द जवलेकर ने कहा कि इस सृजन विविधा का उद्देश्य नये रचनाकारों को प्रोत्साहित करना तो है ही साथ ही यह भी अपेक्षा रहती है कि रचनाकार अपनी नई रचना के साथ यहाॅं पर आये। कार्यक्रम का संचालन प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने किया एवं आभार विजय खंडेलवाल ने व्यक्त किया। इस अवसर पर सर्वश्री उमेश पारेख, राजेश शर्मा, शिव शुक्ल, आदि काफी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।