गीत लिखूँ भी तो क्या

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गीत लिखूँ भी तो क्या,
गुनगुनाना भी तो मुश्किल है।
मुश्किल है जीवन में साज़ यहाँ,
पत्थरों की ये महफिल है।।
कौन था वो एक फकीरा,
बस जो गाए जाता था
जीवन है एक भूल,
जो ये समझाए जाता था
कहता था रैनबसेरा है,
ये लंबे जीवन का सपना,
तू कोमल-सी है बूँद ओस की,
और जग उमड़ता साहिल है।
गीत लिखूँ भी तो क्या…।
जब भी लड़ता हूँ खुद से मैं,
कोई अपना रुठा करता है
जिस दिल को समझता हूँ,
बस वो दिल टूटा करता है।
फिर जोडूँ इसे भी तो क्या,
ये खुद ही अपना कातिल है।
गीत लिखूँ भी तो क्या…।
गुनगुनाना भी तो मुश्किल है।।
# सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।

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