
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।
संकेत प्रभु का,
तुम भूलना जाना,
जिनेन्द्रालाय चले आना।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।
मैं पल छीन डगर बुहारूंगा,
तेरी राह निहारूंगा।
आना जिनेन्द्रालाय दर्शन को,
करना पूजा भक्ति यहां।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढले आना।।
नित साँझ सबेरे मंदिर में,
पूंजा भक्ति में करता हूँ।
और करता हूँ स्वाध्य,
जिनवाणी का।
आत्म शुध्दि के महापर्व पर।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।
जन्म जन्म से भाव सजोये थे,
मुनि दीक्षा हम अब पाएंगे।
श्रध्दाभक्ति विनय समर्पण का,
कुछ तो दे दो फल।
मेरी दीक्षा विद्या गुरुवर के,
हाथो से बस अब हो।
ऐसा आशीर्वाद हे मुनिवर ,
मुझे आप ये दे दो।।
जब भोर हुए आना,
जब शाम ढ़ले आना।।
उपरोक्त भजन श्रुत पंचमी के उपलक्ष्य पर जैन श्रावको को संजय जैन की और से समर्पित है।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।